रूस: किस्सा 500 टन सोने के गायब खजाने का
ये इतना दूर और इतना दुर्गम इलाक़ा है कि यहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। ये है इर्कुटस्क शहर।
क़िस्सा रूस में कम्युनिस्ट क्रांति के दौर का है। पहले विश्व युद्ध के बाद रूस में बोल्शेविक क्रांति हो गई थी। लेनिन और उनके कमांडर लियोन ट्रॉटस्की ने रूस के बादशाह ज़ार निकोलस द्वितीय की सेनाओ को कई जगह शिकस्त दे दी थी। लेनिन के कमांडरख़ास तौर से रूस के पश्चिमी इलाक़ों में एक बड़े हिस्से पर वामपंथी क्रांतिकारियों का क़ब्ज़ा हो गया था। इसी दौर में ज़ार निकोलस द्वितीय के सलाहकारों ने उन्हें सलाह दी कि वो अपने ख़ज़ाने को राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग से पूर्वी इलाक़े में कहीं भेज दें, वरना वो क्रांतिकारियों के हाथ लग जाएंगे।उस वक़्त अमरीका और फ्रांस के बाद रूस के पास ही सोने का तीसरा बड़ा ज़ख़ीरा था। ज़ार निकोलस की समर्थक व्हाइट फोर्सेज ने क़रीब पांच सौ टन सोना एक ट्रेन में लादकर सेंट पीटर्सबर्ग से पूर्वी शहर कज़ान की तरफ़ रवाना कर दिया। इस बात की ख़बर लेनिन के कमांडर लियोन ट्रॉटस्की को लग गई।
उसने ट्रेन के और आगे रवाना कर दिया। अब इस ट्रेन की मंज़िल साइबेरिया का इर्कुटस्क शहर थी। ये एक कारोबारी ठिकाना था जो बैकाल झील के पास स्थित था। आज भी इर्कुटस्क ने कुछ ज़्यादा तरक़्क़ी नहीं की है। रात में यहां घुप्प अंधेरा होता है। बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाओ तक की यहां कमी है।
हां, तो हम ख़ज़ाने वाली ट्रेन की बात कर रहे थे। ख़ज़ाने वाली ट्रेन जब इर्कुटस्क शहर पहुंची तो उसे वहां मौजूद चेक सैनिकों ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया। ये चेक फौजी, पहले विश्व युद्ध में रूस की तरफ़ से लड़ने के लिए आए थे। जंग के दौरान ही रूस में क्रांति हो गई। जिस वजह से ये सैनिक वहीं फंस गए थे। इन सैनिकों को घर जाने की जल्दी थी।इतने लंबे सफ़र के बावजूद ट्रेन में एसी और ढंग के बाथरूम जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। बीबीसी संवाददाता लिना ज़ेल्डोविच, रूस की ही रहने वाली हैं। उनका परिवार क़रीब तीस साल पहले रूस से अमरीका के न्यूयॉर्क में जाकर बस गया था। उनका परिवार कज़ान इलाक़े के पास ही रहता था।
कुछ लोग कहते हैं कि ख़ज़ाने से लदी एक ट्रेन बैकाल झील में डूब गई थी। जिसे कभी निकाला नहीं जा सका। इसका अंदाज़ा लगाने के लिए लिना ने एक बहुत पुरानी कोयले वाले इंजन से चलने वाली ट्रेन से बैकाल झील के पास सफ़र किया।
ये ट्रेन जैसे हिचकोले खाते हुए चलती है, उससे तो वाक़ई यही लगा कि अगर ख़ज़ाने से लदी ट्रेन उस वक़्त लुढ़की होगी तो सीधे झील में ही जा गिरी होगी। उस वक़्त की रेलगाड़ियां तो और भी ज़्यादा हिचकोले खाते चलती थीं। इस ट्रेन के ड्राइवरों से बातचीत में भी लिना को ख़ज़ाने से जुड़े नए क़िस्से सुनने को मिले। पांच सौ टन सोनाइन ड्राइवरों का मानना था कि चेक लड़ाकों ने पूरा पांच सौ टन सोना ट्रॉटस्की के हवाले नहीं किया था। वो 200 टन सोना अपने साथ पानी के जहाज़ से अपने देश ले जाने के लिए दूसरी ट्रेन में लाद कर चले थे। मगर ये ट्रेन भी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंची।इसी ट्रेन के बैकाल झील में गिर जाने के क़िस्से कुछ स्थानीय लोगों की ज़ुबान पर आज तक हैं। बैकाल झील के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाली ट्रेन आज भी इर्कुटस्क में चलती है। इसमें कोयले से चलने वाले इंजन लगे होते हैं। इस गाड़ी में सिर्फ़ दो डिब्बे लगे होते हैं।
अगर हेलमेट पहनना अपनी तौहीन समझते हैं, तो देख लीजिए ये तस्वीरें, फिर तो सोते समय भी हेलमेट लगाएंगे!