जब एसपी ने सरेंडर के लिए पत्नी को फूलन के पास भेजा
वो उन्हें लालटेन से गाइड करता हुआ एक झोपड़ी के पास ले गया। जब वो अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर झोपड़ी में घुसे तो अंदर बात कर रहे लोग चुप हो गए। साफ़ था कि उन लोगों ने चतुर्वेदी को पहले कभी देखा नहीं था। लेकिन उन्होंने उन्हें दाल, चपाती और भुने हुए भुट्टे खाने को दिए। उनके साथी ने कहा कि उन्हें यहां एक घंटे तक इंतज़ार करना होगा।
वो सफ़रथोड़ी देर बाद आगे का सफ़र शुरू हुआ। मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख़्स ने कहा, 'कंबल ले लियो महाराज।' कंबल ओढ़कर जब ये दोनों चंबल नदी की ओर जाने के लिए कच्चे रास्ते पर बढ़े तो चतुर्वेदी के लिए मोटर साइकिल पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था रास्ते में इतने गड्ढे थे कि मोटर साइकिल की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटे से आगे नहीं बढ़ पा रही थी।वो लोग छह किलोमीटर चले होंगे कि अचानक पीछे बैठे शख़्स ने कहा, 'रोकिए महाराज।'
वहां उन्होंने अपनी मोटर साइकिल छोड़ दी। गाइड ने टॉर्च निकाली और वो उसकी रोशनी में घने पेड़ों के पीछे बढ़ने लगे। अंतत: कई घंटों तक चलने के बाद ये दोनों लोग एक टीले के पास पहुंचे।चतुर्वेदी ये देख कर दंग रह गए कि वहां पहले से ही आग जलाने के लिए लकड़ियाँ रखी हुई थीं। उनके साथी ने उसमें आग लगाई और वो दोनों अपने हाथ सेंकने लगे।
राजेंद्र चतुर्वेदी ने अपनी घड़ी की ओर देखा। उस समय रात के ढाई बज रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर चलना शुरू किया।अचानक उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, 'रुको।' एक व्यक्ति ने उनके मुंह पर टॉर्च मारी। तभी उनके साथ वहाँ तक आने वाला गाइड गायब हो गया और दूसरा शख्स उन्हें आगे का रास्ता दिखाने लगा।वो बहुत तेज़ चल रहा था और चतुर्वेदी को उसके साथ चलने में दिक़्क़त हो रही थी। वो लगभग छह किलोमीटर चले होंगे। पौ फटने लगी थी और उन्हें बीहड़ दिखाई देने लगे थे।उन्होंने फूलन को पोलोरॉएड कैमरे से ली गई अपनी और उसके परिवार की तस्वीरें दिखाईं। उन्होंने ये भी कहा कि वो उनकी आवाज़ें भी टेप करके लाए हैं। जैसे ही फूलन ने टेप रिकॉर्डर पर अपनी बहन की आवाज़ सुनी, उनका सारा तनाव हवा हो गया।
अचानक फूलन ने पूछा, 'आप मुझसे क्या चाहते हैं?' चतुर्वेदी ने कहा, ''आप को मालूम है मैं यहाँ क्यों आया हूँ। हम चाहते हैं कि आप आत्मसमर्पण कर दें। इतना सुनना था कि फूलन आग बबूला हो गई। चिल्ला कर बोली,''तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारे कहने भर से हथियार डाल दूँगी। मैं फूलन देवी हूँ। मैं इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूँ।''पुलिस अधीक्षक राजेंद्र चतुर्वेदी को लगा कि नियंत्रण उनके हाथ से जा रहा है। फूलन के रौद्र रूप को देखते हुए मान सिंह ने तनाव कम करने की कोशिश की। उसने चतुर्वेदी से कहा, आइए मैं आपको गैंग के दूसरे सदस्यों सेमिलवाता हूँ। एक-एक कर मोहन सिंह, गोविंद, मेंहदी हसन, जीवन और मुन्ना को चतुर्वेदी से मिलवाया गया।चतुर्वेदी याद करते हैं, ''मैंने उनसे कहा कि आप मेरे साथ अपना एक आदमी कर दीजिए। मैं उसे ख़ुद मुख्यमंत्री के पास ले जाकर उनसे मिलवाऊंगा। फूलन ने एक व्यक्ति को मेरे साथ लगा दिया।''
''शाम को हमने वहाँ से चलना शुरू किया और दो बजे रात को हम भिंड पहुंचे। मैंने तुरंत मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को फ़ोन मिलाया। वो मेरे फ़ोन का इंतज़ार कर रहे थे। मैंने सिर्फ़ इतना कहा, 'सर टू डाउन डन।''टू डाउन हमारा कोड वर्ड था। मैंने उनसे कहा, सर मैं सुबह छह बजे ग्वालियर से दिल्ली की फ़्लाइट पकड़ रहा हूँ। मैंने फूलन के उस साथी के लिए भी टिकट ख़रीदा। इंडियन एयरलाइंस के अधिकारियों से अनुरोध किया कि हमें बिज़नेस क्लास में अपग्रेड कर दें। दिल्ली हवाई अड्डे से हम टैक्सी में बैठकर मध्य प्रदेश भवन पहुंचे।चतुर्वेदी ने बताया, ''वहां मैंने अपने और फूलन के साथी के लिए कमरा बुक करा दिया था। अर्जुन सिंह ने अपनी दाढ़ी तक नहीं बनाई थी। वो अपने कमरे में बैठे चाँदी के गिलास में संतरे का जूस पी रहे थे। मैंने उन्हें पोलोरॉएड कैमरे से खीचीं गई फूलन की तस्वीरें दिखाईं। मैंने कहा उनके एक आदमी मेरे साथ आए हैं और मेरे कमरे में बैठे हुए हैं।''उन्होंने फ़ौरन उन्हें बुलवा लिया। उन्होंने देखते ही अर्जुन सिंह के पैर छुए। मैंने उन्हीं के सामने उनसे कहा कि अब तो आपको विश्वास हो गया कि मुझे मुख्यमंत्री ने ही भेजा था।'