हाल ही में रिलीज फिल्म धोनी द अनटोल्ड स्टोरी में दिखाया गया है कि धोनी खेल के शुरुआती दौर में रेल टिकट कलेक्टिंग का काम करते थे। खेल के साथ रेल का काम संभालने वाले सिर्फ धोनी सिर्फ अकेले खिलाड़ी नहीं हैं। रियो में भारतीय महिला हॉकी टीम के कप्तान सुशीला चानू भी आज धोनी की राह पर चल रही हैं। आइए जानें कैसे...
सैलरी भी कटती: 1992 में मणिपुर के इम्फाल में जन्मी सुशीला के पिता ड्राइवर और मां एक हाउसवाइफ हैं। सुशीला को तनख्वाह के तौर पर केवल 26,000 रुपये मिलते हैं। सबसे खास बात तो यह देश की ओर से इतने बड़े स्तर पर खेलने के बाद भी इस प्रतिष्ठा को सुशीला इसे अपनी नौकरी में नहीं लाती हैं। वह हमेशा समय से अपनी ड्यूटी पर जाती हैं। इतना ही नहीं अगर कहीं खेल आदि के लिए वह छुट्टी लेती हैं तो इस पर उनकी सैलरी भी कटती है। अच्छा प्रद्रर्शन:
बता दें कि सुशीला चानू जब 11 साल की थीं तब से हॉकी खेल रही हैं। सुशीला ने 2013 में हुए जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन किया था। इस दौरान इन्होंने बॉन्ज मेडल जीता था। वहीं सीनियर नेशनल टीम में आने के पिछले साल हुए हॉकी वर्ल्ड लीग टूर्नामेंट में भी उनकी टीम ने अच्छा खेला था। इस दौरान उनकी टीम सेमीफाइनल तक पहुंची थी। वहीं ऑस्ट्रेलिया में हुए चार देशों के टूर्नामेंट में भी सुशीला ने भारतीय महिला हॉकी टीम का कुशल नेतृत्व किया।
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Posted By: Shweta Mishra