ये भारतीय क्रिकेटर पहनते हैं सेना की वर्दी, मैदान पर पाकिस्तानियों को चटा चुके हैं धूल
कानपुर। पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने के बाद पूरे देश में जन आक्रोश फैला हुआ है। भारत का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी नहीं हो रही। यहां तक कि भारतीय क्रिकेटर्स भी अब आर-पार की लड़ाई चाहते हैं। भारत के बाएं हाथ के पूर्व बल्लेबाज गौतम गंभीर ने यहां तक कह दिया कि पाक से बातचीत अब टेबल पर नहीं जंग के मैदान में होनी चाहिए। बता दें गंभीर को भारतीय सेना से काफी लगाव है। गौती ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर वह क्रिकेटर न होते तो सेना के जवान होते। खैर गंभीर का सेना की वर्दी पहनने का सपना भले अधूरा रह गया। मगर कुछ भारतीय क्रिकेटर्स हैं जो भारतीय सेना की आज भी वर्दी पहनते हैं।
भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज और पूर्व कप्तान एमएस धोनी को आर्मी ड्रेस काफी अच्छी लगती हैं। यही वजह है कि वह कैमोफ्लेग ड्रेस में अक्सर नजर आते हैं। मगर अब तो उन्हें इसकी आधिकारिक इजाजत भी मिली है। 2011 वर्ल्ड कप जीतने के बाद प्रादेशिक सेना ने धोनी को लेफ्टिनेंट कर्नल की मानक उपाधि से नवाजा था। धोनी का सपना था कि वह भी आर्मी ज्वॉइन करते हालांकि वह सीधे तौर पर न सही, ऑनरेरी ले.कर्नल बन गए। भारतीय सेना का हिस्सा बनने के बाद धोनी को वो सारी सुविधाएं मिलती हैं जो सेना के एक जवान को मिलती है।
इंडियन क्रिकेट टीम के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को 2010 में इंडियन एयर फोर्स में ग्रुप कैप्टन की उपाधि से नवाजा गया था। तब सचिन ने उस कार्यक्रम में कहा था कि, ''मैं भारतीय वायु सेना को सैल्यूट करता हूं। उसने इस पद के माध्यम से मुझे सम्मान दिया है। इस सम्मान का सपना मैं बचपन से देखा करता था। आखिरकार आज मेरा यह सपना पूरा हुआ। मैं चाहता हूं कि मेरे देश का हर युवक विश्व की सर्वश्रेष्ठ वायुसेना में शामिल होकर देश की सेवा में योगदान दे।'' इसके बाद सचिन को कई मौकों पर इस वर्दी में देखा गया है।
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की तेज गेंदबाज शिखा पांडेय भी सेना से जुड़ी हैं। हालांकि शिखा को धोनी, सचिन और कपिल की तरह मानद उपाधि नहीं मिली। वो असल में इंडियन एयर फोर्स की ऑफिसर हैं। क्रिकेट खेलने से पहले शिखा भारतीय वायु सेना में बतौर फ्लाइट लेफ्टिनेंट जुड़ी थीं हालांकि बाद में उन्हें क्रिकेट खेलने की इजाजत मिली और भारतीय महिला टीम में इंट्री पाई। बात दें क्रिकेट से समय मिलते ही शिखा अपनी नौकरी पर पहुंच जाती हैं।