उम्मीदों को पूरा करने की कठिन परीक्षा
जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने अपने पक्ष में सूनामी पैदा कर दी.भारत के मनोनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2001 से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, जिसे औद्योगिक रूप से समृद्ध राज्य माना जाता है. इसलिए उनसे बहुत सारी उम्मीदें लगाई जा रही हैं.उनकी सबसे बड़ी चुनौतियाँ अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकना होगा, खाद्य पदार्थों के बढ़ते दामों को रोकना और देश की युवा पीढ़ी के लिए नौकरियों के अवसर पैदा करना है.मोदी को भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलानों को विश्वास दिलाना होगा कि जिस पार्टी का वो नेतृत्व करते हैं, वो बहुसंख्यक राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा को ही नहीं अपनाएगी.ये बेहद जरूरी है क्योंकि देश का हर सातवां नागरिक मुसलमान है.
देश के बड़े मुसलमान तबके में मोदी को लेकर एक तरह का डर रहा है और इसकी वजह हैं 2002 को गुजरात दंगे जिनमें एक हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए थे. इनमें ज़्यादातर मुसलमान थे.मोदी की चुनौतीइस चुनाव में मोदी के हक़ में हवा बहने की एक बड़ी वजह थी उनकी तरफ़ से विकास के गुजरात मॉडल को ज़ोर-शोर से उठाना, जिसमें उद्योग धंधे स्थापित करने पर सबसे ज़्यादा ज़ोर था.
वैसे देखा जाए तो स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण के मामले में कई राज्य गुजरात से आगे हैं, लेकिन गुजरात में उद्योग और कारोबार को बढ़ावा देने की बहुत पुरानी परंपरा रही है.आम चुनावों में रिकॉर्ड 66 फीसदी मतदान होना भी मोदी के पक्ष में गया.
हालांकि सरकार की तरफ़ से बार-बार ये दावे किए गए कि आर्थिक विकास दर समावेशी रही है, लेकिन ख़ुद सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 2004 से सालाना 2.2 प्रतिशत की दर से ही नौकरियां सृजित की गई हैं.
मोदी और भाजपा की जीत का कॉरपोरेट सेक्टर ने स्वागत किया है, जिसने खुल कर मोदी का समर्थन किया और उनकी चुनाव प्रचार मुहिम के लिए काफ़ी चंदा भी दिया.लेकिन अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना और तुरत-फुरत लाना, ये आसान काम नहीं होगा. हाल के महीनों में औद्योगिक उत्पादन घटा है जबकि खाद्य मुद्रास्फीति अब भी दो अंकों के क़रीब हैं.मोदी ने अपने प्रचार में लोगों की जितनी ऊंची उम्मीदें दी हैं, उन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा.