आप असुरक्षित ही रहेंगे..
इसीलिए ये प्रश्न उठता है कि ख़ुद को ये य़कीन दिलाने के लिए कि हमें आखिर कितने और कैसे हथियार चाहिए कि अब हम सुरक्षित हो गए हैं?मगर मेरा यूं प्रश्नचिन्ह लगाना वैसा ही है जैसे कि आप मुझसे पूछ लें कि भइया तुझे इज्जत की ज़िंदगी बिताने के लिए कितना धन-दौलत चाहिए?या तुझे कितनी सैक्सुअल पावर चाहिए कि तुझे ये वहम ख़त्म हो जाए कि शारीरिक संबंधों में वो बात पैदा नहीं हो रही है जो होनी चाहिए.या किसी महिला से ये पूछ लिया जाए कि आखिर आपको कैसी शक्ल-सूरत चाहिए कि आप ये सोचकर शांत हो जाएं कि बस मुझे तो इतना ही खूबसूरत होना अच्छा लगता है.मैंने कई राजगुरुओं को किसी बुद्धिजीवी के इस आह्वान पर वाह-वाह करते देखा है कि मन की अशांति ही असुरक्षा की मां है.हथियारों की होड़
अच्छे भले दिखने वाले मंत्रियों और सेक्रेटरियों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर क्या आपको अपना बचपन याद नहीं आता.याद है जब हम एक दूसरे से मुकाबला करते थे कि तेरे पास ईगल का पेन है तो मेरे पास भी मोबलॉ वाला पेन है बेटे.
कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी किस्मतों का फैसला करने वाले ये बुजुर्ग शारीरिक हिसाब-किताब से तो भले बड़े हो गए लेकिन सिर में दिमाग वही बच्चों वाला लिए बैठे हैं.वैसे इन हथियारों से आप किस-किस की ऐसी-तैसी करना पसंद करेंगे. किस पर कब्जा करेंगे. या फिर इसे स्टेटस सिंबल बनाएंगे.या आपको ये डर है कि आपके करोड़ों-अरबों भूखों, बीमारों, कंगलों, अंगूठा छापों पे कहीं दूर पड़ोस के कंगले, भूखे, बीमार और अंगूठा छाप आक्रमण न कर दें.या फिर आप इन पड़ोसियों पर कब्जा करके नए भूखों, कंगलों, बीमारों और अंगूठा छापों को अपनी आबादी में शामिल करना चाहते हैं.डर की वजह
हो सकता है कि इसी तरह अरबों डॉलर बच जाएं. अपने बीमारों के लिए, अंगूठा छापों के लिए, कंगलों के लिए और भूखों के लिए.