आपकी सुस्ती हो सकती है जानलेवा ?
जानी मानी ब्रितानी स्वास्थ्य पत्रिका लैन्सेट में छपे एक शोध के मुताबिक़ दुनिया भर में व्यायाम या किसी भी तरह का शारिरिक परिश्रम करने वालों की संख्या घटती जा रही है.रिपोर्ट के अनुसार व्यायाम या शारिरिक परिश्रम करने का मतलब सप्ताह में पांच दिन लगभग 30 मिनट तक वॉक करना या सप्ताह में दो दिन कम से कम 20 मिनट तक कठिन व्यायाम करना है.लेकिन मामला सिर्फ़ निजी इच्छा का नहीं है कि आप व्यायाम करें या ना करें. शोध के अनुसार आपका आलस्य आपकी जान भी ले सकता है.शोध के अनुसार व्यायाम ना करने से दिल का दौरा, मधुमेह और कोलोन कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं.रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के हवाले से कहा गया है कि व्यायाम ना करने और आलस्यपूर्ण जीवन शैली के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग 50 लाख लोगों की मौत होती है.
और ऐसी जीवन शैली सेहत के लिए उतनी ही हानिकारक है जितना सिगरेट पीने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है.रिपोर्ट के अनुसार अगर व्यायाम ना करने वाले लोगों में से केवल 25 फ़ीसदी लोग व्यायाम करने लगें तो इससे सालाना लगभग 13 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है.आलसी ब्रिटेन
इस शोध के लिए दुनिया भर के 122 देशों का सर्वेक्षण किया गया है जो कि दुनिया भर के 89 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं.शोध के अनुसार माल्टा ऐसा देश है जहां के लगभग 72 फ़ीसदी वयस्क कोई शारीरिक परिश्रम नहीं करते हैं. उसी के आस-पास स्वाज़ीलैंड भी हैं. जबकि सऊदी अरब तीसरा सबसे आलसी देश हैं जहां 68.8 फ़ीसदी लोग कोई व्यायाम नहीं करते हैं.ब्रिटेन भी इनसे ज्यादा पीछे नहीं हैं जहां 63.3 प्रतिशत लोग व्यायाम नहीं करते हैं.अमरीका में व्यायाम ना करने वालों की संख्या लगभग 40 फीसदी है.भारत बेहतरलेकिन भारत का रिकॉर्ड इस मामले में काफ़ी बेहतर है. शोध के मुताबिक़ भारत में केवल 15.6 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो कोई व्यायाम नहीं करते हैं.भारत के पड़ोसियों की बात करें तो पाकिस्तान में 40 फीसदी, श्रीलंका में 26 फ़ीसदी, चीन में 31 फ़ीसदी नेपाल में 15.5 फीसदी लोग व्यायाम नहीं करते हैं.लेकिन इस मामले में बाज़ी मारी है बांग्लादेश ने जहां केवल 4.7 फीसदी ऐसे लोग हैं जो कोई भी व्यायाम नहीं करते हैं.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ताओं में से एक प्रोफ़ेसर पेड्रो हलाल कहते हैं कि ये काफ़ी अफ़सोस की बात है कि दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं की तुलना में इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है और ना ही इस पर पैसे ख़र्च किए जाते हैं.