ईश्वरा महादेव मंदिर: सावन की हर रात अदृश्य शक्ति करती है भगवान शिव की पूजा
ईश्वरा महादेव मंदिर, जो कि मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के विशाल घने जंगलों में स्थित है। उसके बारे में मान्यता है कि कोई अदृश्य शक्ति श्रावण मास की हर रात को इस प्राचीन शिवलिंग की पूजा करने हजारों वर्षों से आती है। यह बात आज तक रहस्य ही बनी हुई है क्योंकि जिसने भी यह पता करने की कोशिश की, वह उसी क्षण दैवीय शक्ति के कारण या तो अपनी सुध—बुध भूल जाता है या फिर अचानक कोई आंधी या तूफ़ान उसी दौरान दस्तक दे जाता है।
महान सिद्धपुरुष की आत्मा से सम्बन्धपौराणिक कहानी के अनुसार, मान्यता है कि कोई महापुरुष अथवा सिद्धपुरुष की आत्मा ही मंदिर में चार बजे के आस—पास स्वयं पूजा-अर्चना करने आती है। कहा जाता है कि यहां संत रामदास महाराज जी तपस्या करते थे और भगवान शिव की पूजा तड़के करते थे। जब वे ब्रह्मलीन हुए तो उसके बाद भी पूजा-अर्चना नियमित रूप से होती रही। पहले तो लोग यही समझते रहे कि कोई भक्त पूजा-अर्चना कर जाता होगा। लेकिन वह भक्त कभी भी किसी को नहीं दिखा तो सबने उस रहस्य को जानने की कोशिश की। लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया।
शिवलिंग पर मिलते हैं बेलपत्र और पुष्प
संतों के अनुसार, शिवलिंग से कई बार सर्प लिपटे देखे गए हैं और फिर अदृश्य हो जाते हैं। पहले तो वर्ष के प्रत्येक रात्रि को पूजा करने की बात बताई जाती है किन्तु अब केवल वह आदर्श शक्ति सावन मास की ही प्रत्येक रात्रि को भगवान भोलेनाथ की आराधना करने को आती है और प्रमाण के तौर पर प्रत्येक सुबह शिवलिंग पर बेलपत्र और पुष्प चढ़े हुए मिलते हैं।प्राकृतिक रूप से होता है जलाभिषेकमुरैना जिले के कैलारस तहसील मुख्यालय से 25 किमी दूर घने जंगल की प्राकृतिक कंदरा में स्थित शिवलिंग पर साल के 365 दिन कुदरती तौर पर पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। कुछ वर्ष पहले तक तो इस मंदिर पहुंचने के लिए रास्ता तक नहीं था। लेकिन इसके बावजूद मनोकामना पूरी होने की उम्मीद में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के अलावा यहां सावन महीने और खासतौर से सोमवार को लोग पूजा करने पहुंचते हैं।राजा ने किया था रहस्य जानने का असफल प्रयास
एक बार पहाड़गढ़ की रियासत के राजा को जब यह बात पता लगी तो कोतुहलवश उन्होंने इस रहस्य से परदा उठाने की ठानी और ईश्वरा महादेव मंदिर पर गुप्त पूजा-अर्चना के रहस्य को जानने के लिए उन्होंने रात में अपनी सेना को मंदिर के इर्द-गिर्द कड़ी चौकसी में लगा दिया और सुबह हुई तो हालात देखकर सारी सेना के होश उड़ गए क्योंकि चौकसी में लगी सेना सुबह चार बजे से पहले ही अचेतन अवस्था में चली गई थी। जब आंख खुली तो वहां पूजा-अर्चना हो चुकी थी।
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