अब किसी आदमी को नहीं मिल सकेगी महिला से ज्यादा सैलरी! यहां तो बन गया कानून
आइसलैंड ने महिलाओं को दे दिया बराबरी का सच्चा हक
अपने देश में बॉलीवुड से लेकर कॉरपोरेट कंपनीज तक इस बात पर तमाम खबरें बन चुकी हैं, जिनमें बताया जाता है कि हमारे यहां कामकाजी महिलाओं को बराबर काम करने के बावजूद पुरुषों की तुलना में कम सैलरी मिलती है। ये कंडीशन सिर्फ इंडिया ही नहीं दुनिया के तमाम देशों में है। अब आइसलैंड ने इस परिपाटी को बदलने का फैसला करते हुए देश में एक ऐसा कानून लागू किया है। जिसके बाद वहां की कामकाजी महिलाओं को मिलेगा बराबरी का सच्चा हक। आइसलैंड की संसद में यह नया बिल पेश किया गया है, जिसके पूरी तरह लागू होते ही देश में कोई भी कंपनी सैलरी देने के मामले में पुरुष और महिला कर्मचारियों के बीच भेदभाव नहीं कर पाएगी। यानि कि कंपनी एक पुरुष कर्मचारी को किसी महिला से ज्यादा सैलरी नहीं दे पाएगी अगर वो दोनों एक जैसा काम करते हैं।
जेंडर गैप के खिलाफ लड़ाई में वर्ल्ड लीडर है आइसलैंड
यूं तो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल जेंडर इंडेक्स की लिस्ट में आइसलैंड पिछले आठ साल से नबंर वन है। इसके बावजूद यहां कामकाजी महिलाएं पुरुषों की तुलना में 14 से 18 परसेंट कम सैलरी पाती हैं। इसी गैप के के खिलाफ आइसलैंड की महिलाओं ने पिछले साल 24 अक्टूबर को देश भर में सांकेतिक हड़ताल की थी। इस हड़ताल के मामले में शानदार बात यह थी कि यहां की महिलाओें ने अपने लंच ऑवर के दौरान यह स्ट्राइक की थी। इस हड़ताल के बाद यहां की सरकार हरकत में आई और उसने 2017 में वीमेंस डे के मौके पर यह बराबरी वाला बिल संसद में पेश किया।
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दुनिया में दो जगहों पर लागू है ऐसा ही नियम
सैलरी के मामले में बराबरी लाने वाला यह बिल आइसलैंड में साल के अंत तक पूरी तरह लागू हो जाएगा। इसके बाद लिंगभेद और राष्ट्रीयता के आधार पर यहां की कंपनियां महिलाओं की सैलरी में कमी नहीं कर पाएंगी। जांच के दौरान जो कंपनी ऐसा करती पाई जाएगी उस पर भारी जुर्माना लगेगा। वैस आपको बता दें दुनिया में आइसलैंड के अलावा स्विट्जरलैंड और अमेरिकन राज्य मिनसोटा में भी ऐसी ही बराबरी वाली स्कीम लागू है, लेकिन वहां की कंपनियां ऐसा करने के लिए कानूनन बाध्य नहीं हैं। आइसलैंड इस मामले में एक कदम आगे बढ़कर दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया है।