भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सांसद और पूर्व विदेशमंत्री जसवंत सिंह ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत सरसंघचालक प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया के शब्द कोई श्रीकृष्ण उवाच या भगवान के शब्द नहीं थे कि उन्हें माना जाए.
By: Subhesh Sharma
Updated Date: Sat, 02 Nov 2013 03:22 PM (IST)
ये बात उन्होंने सन 2000 में भारत से नेपाल जा रहे इंडियन एअरलाइंस के विमान के अपहरण के संदर्भ में कही है.आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख रज्जू भैया ने हिंदू समाज को कायर बताया था और सुझाव दिया था कि “विमान में भी आठ-दस युवक एक साथ खड़े होकर, शोर मचाकर अपहरणकर्ताओं पर काबू पाने की कोशिश कर सकते थे. परन्तु प्राणों के भय ने सबको एक सहयात्री की हत्या पर भी उद्वेलित नहीं किया.”दिल्ली से काठमांडू जा रहे विमान को अपहरणकर्ता कंधार ले गए थे और उसमें बैठे 166 यात्रियों के बदले तीन चरमपंथियों -- मुश्ताक़ अहमद ज़रगर, अहमद उमर सईद शेख़ और मौलाना मसूद अज़हर -- की रिहाई की शर्त रखी थी.उस वक़्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और जसवंत सिंह उसमें विदेशमंत्री थे और वो ख़ुद तीनों चरमपंथियों को कंधार तक छोड़ने के लिए गए थे.
जसवंत सिंह ने भारत के सुरक्षा प्रश्नों पर एक किताब लिखी है – इंडिया एट रिस्क: मिस्टेक्स, मिसकनसेप्शन एंड मिसएडवेंचर ऑफ़ सिक्यूरिटी पॉलिसी.इस किताब में उन्होंने भारत के आंतरिक और बाहरी संघर्षों का विश्लेषण करते हुए कंधार विमान अपहरण कांड का भी ज़िक्र किया है.असहमति
पर क्या ये संभव था कि आरएसएस प्रमुख रज्जू भैया के सुझाव के मुताबिक़ विमान के अंदर बैठे नौजवान खड़े होकर विमान अपहरणकर्ताओं को काबू में कर लेते?जसवंत सिंह ने कहा, “कई बार विमान अपहरण हुए हैं और कभी भी लोगों ने ऐसा नहीं किया है. इसके लिए आप अपने ही नागरिकों की आलोचना नहीं कर सकते. मुझे माफ़ कीजिए मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ.”क्या तब भी नहीं जब ये बात आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख रज्जू भैया ने कही हो?जसवंत सिंह ने कहा, “ये कोई श्रीकृष्ण उवाच नहीं है. ये कोई ईश्वर की वाणी नहीं है.”अपहृत यात्रियों के रिश्तेदारों ने दिल्ली में लगातार प्रदर्शन किए थे जिसके बाद वाजपेयी मंत्रिमंडल ने चरमपंथियों को छोड़ने का फ़ैसला किया.
दुविधा"ये (रज्जू भैया का बयान) कोई श्रीकृष्ण उवाच नहीं है. ये कोई ईश्वर की वाणी नहीं है."-जसवंत सिंह, बीजेपी नेतारज्जू भैया ने संघ के अख़बार पांचजन्य के 9 जनवरी 2000 के अंक में लगभग खीझकर लिखा था: “प्राणों के भय ने सबको एक सहयात्री की हत्या पर भी उद्वेलित नहीं किया. यात्रियों के रिश्तेदारों में तनाव और चिन्ता का होना स्वाभाविक है. परन्तु जिस सीमा तक जाकर उन्होंने प्रदर्शन किए वह किसी शालीन और स्वाभिमानी समाज से अपेक्षित नहीं होता.”
पर जसवंत सिंह ने स्पष्ट कहा कि वो इस बात से सहमत नहीं हैं.वो मानते हैं कि कई बार ग़लत और सही में से एक को चुनना नहीं होता बल्कि दो ग़लत में से एक को चुनने की चुनौती होती है और एअर इंडिया विमान अपहरण कांड में भी यही हुआ.जसवंत सिंह ने कहा, “सरकार ने जीवन बचाने का फ़ैसला किया”.
Posted By: Subhesh Sharma