हेमराज की पत्नी: भगवान करे, मेरे बेटे को इंडिया नहीं भेजना पड़े
भारतीय मीडिया में सामान्यतः आरुषि हत्याकांड कहकर संबोधित किए जा रहे इस मामले के दूसरे पीड़ित हेमराज को अमूमन उपेक्षित ही रखा गया है.घटना के बाद 14 साल की आरुषि, अब उसकी हत्या के दोषी उसके मां-बाप की तकलीफ़ों-भावनाओं को लेकर तो बहुत कुछ कहा गया लेकिन एक गरीब नौकर, जो अपना परिवार पालने के लिए एक गरीब देश से आए थे, के बारे में कुछ कहने, सोचने की ज़हमत किसी ने नहीं उठाई.वहीं हेमराज की हत्या के बाद उनकी पत्नी ख़ुमकला अपने इकलौते बेटे को नौकरी के लिए भारत नहीं भेजना चाहतीं. वह कहती हैं, "इंडिया भेजने को मेरा मन नहीं करता, भगवान करे मेरे बच्चे को कुछ भी मिले यहीं नेपाल में मिल जाए. इंडिया भेजना नहीं पड़े."
नेपाल के अर्घाखांची धारापानी में हेमराज का घर किसी भारतीय पहाड़ी घर से अलग नहीं है. परिवार के पास थोड़ी सी ज़मीन है लेकिन उससे गुज़ारा नहीं चलता. इसीलिए हेमराज भारत, मलेशिया और फिर भारत गए ताकि नौकरी कर परिवार का पेट भर सकें, बच्चों को शिक्षा दिलवा सकें.
हेमराज की पत्नी बताती हैं कि तलवार दंपत्ती के घर नौकरी करते हुए हेमराज हर महीने करीब पांच हज़ार रुपये अपने घर भेजते थे. यह राशि बहुत बड़ी तो नहीं थी लेकिन इससे परिवार का गुज़ारा चल जाता था.
रिश्तेदारों की मेहरबानी
वह कहती हैं, "जो ग़लत काम करता है उसको सजा होनी चाहिए, उसको पीटना चाहिए था लेकिन उन्हें मारना नहीं चाहिए था. उनको घर से निकाल देते. एक ग़रीब आदमी नेपाल से काम करने के लिए, दो रोटी खाने के लिए इंडिया में गए, उसे वहीं मार के ख़त्म नहीं कर देना चाहिए."अपने बेटे को भारत नहीं भेजने की उनकी इस इच्छा या फ़रियाद को समझना शायद कोई बहुत मुश्किल काम भी नहीं.