कश्मीर को अलग करने की धमकी नहीं दी: उमर
उन्होंने कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी कश्मीर के भारत में विलय से जुड़े सवालों को फिर से खोलना चाहती है तो “उसे कोई नहीं रोक सकता, लेकिन मैं उन्हें इससे जुड़े ख़तरों के प्रति आगाह करता रहूँगा.”जम्मू में अपने निवास स्थान पर बीबीसी हिन्दी रेडियो को दिए एक लंबे इंटरव्यू में उन्होंने सवाल किया, “संविधान के अनुच्छेद 370 के अलावा जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच और क्या संपर्क सूत्र है? क्या वो (बीजेपी) भारत और कश्मीर के बीच के इस पुल को तोड़ना चाहते हैं?”प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जीतेंद्र सिंह ने हाल ही में कहा था कि अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने सिलसिले में विचार विमर्श शुरू किया जा चुका है. इस पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने ही दी.
उन्होंने ट्वीट किया, “मेरे शब्द याद रखिएगा – जब नरेंद्र मोदी सरकार की यादें भी धुँधला जाएँगी, तब या तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा या फिर अनुच्छेद 370 अपनी जगह बना रहेगा.”सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसे परोक्ष रूप से अलगाव की धमकी बताया.'धमकी नहीं चेतावनी'लेकिन उमर अब्दुल्लाह ने इससे इनकार किया है.
लंबे अरसे तक चले चुनाव प्रचार के बाद काफ़ी छरहरे दिख रहे उमर ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा, “चुनाव प्रचार के दौरान जीतेंद्र सिंह का अनुच्छेद 370 के ख़िलाफ़ बात करना एक अलग बात थी, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री बनने के बाद ऐसा कहने के मायने एकदम अलग हैं. मुझे लगता है कि उन्हें इसके नतीजों को समझना होगा. मैं कोई धमकी नहीं दे रहा हूँ. और न धमकी देना मेरी प्रकृति में शामिल है.”उनसे पूछा गया कि अनुच्छेद 370 ख़त्म होने पर कश्मीर के भारत से अलग हो जाने की बात क्या वो कश्मीर के अलगाववादियों को ध्यान में रखकर कह रहे हैं?उमर अब्दुल्ला का जवाब था, “मुझे उससे क्या मिलेगा? उनका (अलगाववादियों का) वश चले तो मुझे वो क़ब्र में गाड़ दें. अगर मेरी राजनीति इन लोगों को ध्यान में रखकर चलने की होती तो मैं 15 अगस्त और 26 जनवरी को हिंदुस्तान का तिरंगा नहीं लहरा रहा होता. मैं भी इन्हीं लोगों की तरह चुनाव बायकॉट की मुहिम चला रहा होता.”चुनावी हार
उन्होंने कहा, “मोदी ने अच्छी शुरुआत की है इसीलिए मैं शपथ ग्रहण समारोह में गया, वरना मैं नहीं जाता. मुझे लगा मोदी ने मेरी रियासत को लेकर नवाज़ शरीफ़ को बुलाने का फ़ैसला किया है इसका अच्छा संदेश जम्मू-कश्मीर में जाएगा.”इस बार अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की ओर से कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को मुलाक़ात के लिए नहीं बुलाया गया जिससे अलगाववादी संगठनों में ग़ुस्सा है.लेकिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह इसे पाकिस्तान के नज़रिए में किसी बुनियादी बदलाव का संकेत नहीं मानते.फिर भी उन्होंने कहा, “(अलगाववादी नेताओं को बुलावा न मिलने के) कई कारण हो सकते हैं. किसी वरिष्ठ पाकिस्तानी नेता का भारत आकर अलगाववादियों को बातचीत के लिए न बुलाना सामान्य तो नहीं है पर अभी से नहीं कहा जा सकता कि आने वाले दिनों में इसका कितना असर होगा.”अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीरकश्मीर में अलगाववादी चरमपंथी आंदोलन के बारे में कई विश्लेषकों का मानना है कि इस साल के अंत में जब अफ़ग़ानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय फ़ौज निकल जाएगी तब कश्मीर में हिंसा का एक नया दौर शुरू हो सकता है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय जेहादी तत्वों को कश्मीर पर ध्यान देने का मौक़ा मिलेगा.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह इससे बहुत सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि जितना हमें डराने की कोशिश की जा रही है उतना असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफ़ग़ानिस्तान में ख़ालीपन नहीं रहने देगा और पाकिस्तान को खुली छूट नहीं दी जाएगी.”उन्होंने कहा, “अंतरराष्ट्रीय समुदाय मानता है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध जम्मू-कश्मीर के कारण ख़राब होते हैं. इसलिए वो पाकिस्तान को किसी भी सूरत में इजाज़त नहीं देंगे कि दोबारा (चरमपंथी) कैंप सक्रिय हों और दोबारा घुसपैठ की कोशिशें की जाएँ.”