पाकिस्तान के शहर लाहौर में निजी स्कूलों के एक संघ ने मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफ़ज़ई की किताब 'आई एम मलाला' पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया है कि इससे छात्रों की वैचारिक बुनियाद पर असर पड़ेगा. लेकिन पाकिस्तान में निजी स्कूलों के इस तरह के और भी कई संघ हैं जो मलाला की किताब प्रतिबंधित करने पर एक राय नहीं रखते हैं.


बीबीसी उर्दू की संवाददाता शुमाएला ने ऑल पाकिस्तान प्राइवेट स्कूल फेडरेशन के अध्यक्ष मिर्ज़ा कासिफ़ अली से बातचीत की और प्रतिबंध पर उनकी राय जानना चाही.सवाल- 'आई एम मलाला' किताब पर क्यों प्रतिबंध लगा देना चाहिए?


बोर्ड ने इस किताब को अच्छी तरह से पढ़ा है. इसके बाद फेडरेशन ने फैसला लिया कि इस किताब में कई ऐसी बातें हैं जो स्कूल के बच्चों के लिए सही नहीं होंगी. सलमान रूश्दी के बारे में मुसलमानों की यही राय है कि उन्होंने जो भी किताबें लिखीं, वे मुसलमानों की भावनाओं और ख्वाहिशों के नजरिए से स्वीकार करने लायक नहीं है. अगर इस संदर्भ में मलाला यह कहती हैं कि सलमान रुश्दी को अपनी राय रखने की आजादी है, तो इससे बच्चों के ऊपर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा. दूसरी ओर, मलाला ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में जहां कहीं भी जिक्र किया, कहीं भी 'अल्लाह उनको शांति दे' (पीबीयूएच) के बारे में बताने की ज़हमत नहीं की.

मलाला का ऐसा करना अफसोसनाक है. दो औरतों की गवाही एक मर्द की गवाही के बराबर मानी जाती है. ये बहस का मुद्दा नहीं है. ये हमारे ईमान का हिस्सा है. ये अल्लाह का हुकूम है. इस अंदाज के लेखन से भ्रम पैदा होते हैं. जो बच्चे मलाला को अपना रोल मॉडल मानते हैं, उनका दिमाग इतना परिपक्व नहीं होता कि वे सब कुछ समझ सके. हमें लगता है कि मलाला की सोच हमारे बच्चों के लिए मुनासिब नहीं है. स्कूल के अंदर हम किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं.सवाल- निजी स्कूलों का पाठ्यक्रम पंजाब पाठ्य पुस्तक बोर्ड तय करता है और ये किताब पाठ्यक्रम में शामिल ही नहीं है, तो इसे प्रतिबंधित कैसे किया जा सकता है?कोर्स में नहीं होने के बावजूद हम बहुत सारी किताबों को लाइब्रेरी में रखते हैं, उसकी विषय वस्तु पर बहस करवाई जाती है, कई बार प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं. हमने ये नहीं कहा कि 'आई एम मलाला' स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा है. हमें उसे लाइब्रेरी या दूसरी गतिविधियों में शामिल किए जाने से ऐतराज है. ये फैसला पूरे बोर्ड का फैसला है.सवाल- इस बोर्ड में कौन-कौन शामिल होते हैं?इसमें वो शिक्षाविद् शामिल होते हैं जो कोर्स की समीक्षा करते हैं, उसे जांचते-परखते हैं.सवाल- इसमें शामिल लोगों के नाम बता सकते हैं.

नहीं, सुरक्षा के ख्याल से हम किसी का नाम नहीं बता सकते हैं. इससे हमारे किसी सदस्य के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है. वैसे उसूली तौर पर हमने तमाम बच्चियों के लिए अपनी आवाज बुलंद की है. इसलिए हम निशाने पर तो पहले से ही हैं.सवाल- इस तरह का फैसला लेने के बाद क्या किसी खास खतरे को महसूस करते हैं? किससे खतरा है आपकोनहीं, हमें ऐसा कोई खतरा नहीं है.सवाल- तो शायद आप एहतियात रखना चाहते हैं. यही वजह है कि नाम नहीं बताना चाहते कि बोर्ड में कौन शामिल थें.मुझे लगता है कि इसकी जरूरत भी नहीं है जब फेडरेशन का प्रेसीडेंट आपको सारी जानकारी दे रहा है. बाद में अगर किसी खुलासे की जरूरत हुई तो जरूर किया जाएगा.

Posted By: Subhesh Sharma