अपने बारे में दूसरों की राय को लेकर रहते हैं चिंतित, तो सद्गुरु से जानें इसका समाधान
पहली बार मैं मतदान करने के योग्य हुआ हूं। अपना वोट डालने के लिए मुझे किस तरह का रवैया अपनाना चाहिए? जब भी कोई चुनाव होता है, लोग मुझसे हमेशा पूछते हैं, 'सद्गुरु हमें किसको वोट देना चाहिए?’
मैं कहता हूं, 'आप वोट डालने के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए।‘ लोकतंत्र का मतलब है कि आप हर बार मूल्यांकन करते हैं, कि आप क्या रुख लेना चाहते हैं। और यह कोई स्थायी निर्णय नहीं होता। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जब भी चुनाव हों, हम मूल्यांकन कर पाएं और यह देख पाएं कि राज्य या राष्ट्र के लिए कौन बेहतर काम करेगा। किसी व्यक्ति या किसी बात के पक्ष में या उसके विरुद्ध पहले से तय निर्णय लेना कबीलों वाली मानसिकता है, लोकतंत्र नहीं। 'क्या मैं वामपंथी हूं, दक्षिणपंथी हूं, या मध्य मार्ग से हूं?’जिस क्षण आप यह रुख अपनाते हैं, आप लोकतंत्र को नष्ट कर रहे हैं और फिर से जागीरदारी का तरीका अपना रहे हैं: 'हम इस जाति के हैं इसलिए हम केवल इस तरह से मतदान करेंगे!’ आप फिर से उस स्थिति की तरफ़ जा रहे हैं कि जब भी सत्ता बदलनी होती थी तो कबिलाई युद्ध होते थे। उस स्थिति में लोकतंत्र नहीं बचेगा।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम कभी भी धर्म, जाति, वर्ग या यहां तक कि एक परिवार के रूप में मतदान न करें। प्रत्येक व्यक्ति इस बात की जांच करने में सक्षम होना चाहिए कि अगले पांच वर्षों के लिए कौन इस देश के लिए सर्वश्रेष्ठ होगा, और उस पार्टी या व्यक्ति को वोट देना चाहिये। यह स्वतंत्रता सभी के मन में आनी चाहिए, विशेषकर युवाओं के मन में। बहुत ध्यान से चुनाव करें। उम्मीदवारों की जानकारी प्राप्त करें और जिम्मेदारी से मताधिकार का प्रयोग करें।
प्रश्न: हम केवल खुश रहने के लिए ही कोई काम करने की प्रेरणा कैसे प्राप्त करें, जबकि समाज हमेशा हमसे मांग करता है कि हम सर्वश्रेष्ठ हों?अगर आप वास्तव में इसे देखें, तो हम सबसे अच्छा नहीं होना चाहते, क्योंकि हम नहीं जानते कि सबसे अच्छा क्या है। हम केवल इतना ही चाहते हैं कि हम हमारे बगल वाले व्यक्ति से बेहतर हों। आप उसका आनंद नहीं ले रहे हैं, जो आपके पास है, बल्कि उसका आनंद ले रहे हैं जो दूसरे के पास नहीं है। यदि दूसरे लोगों की पीड़ा आपके आनंद का स्रोत है, तो यह एक बीमारी है। इस बीमारी ने लोगों को छोटी उम्र से ही पकड़ लिया है। बचपन से ही जीवन को एक दौड़ समझने से लोग अनावश्यक रूप से चिंतित हो गए हैं। वे आपको सिखाते हैं, 'आपको पहले नम्बर पर होना चाहिए।‘ आपने कभी नहीं पूछा, 'दूसरे बच्चों का क्या होगा?’ 'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता! आपको सभी के सिर के ऊपर बैठना होगा, तभी जीवन होगा!’, इससे आपकी या दुनिया की भलाई नहीं होगी।
सबसे अच्छा होने की बजाय, यह महत्वपूर्ण है कि यह जीवन पूर्ण अभिव्यक्ति पाए- आप उन सभी संभावनाओं को पाएं जो आपके भीतर हैं। यह जीवन अधूरा नहीं जाना चाहिए। यह दूसरों से बेहतर है या नहीं, यह मुद्दा नहीं है। थोड़े समय के लिए प्रतिस्पर्धा ठीक है; हमारे धैर्य का परीक्षण करने के लिए, यहां-वहां, हम ऐसे खेल सकते हैं, दौड़ सकते हैं जैसे हमारा जीवन इस पर निर्भर हो! लेकिन जीवन कोई दौड़ नहीं है। अगर जीवन एक दौड़ बन जाए, और पहले आपको ही इस दौड़ की समापन रेखा पर पहुंचना हो, तो आप जानते हैं कि इसका क्या मतलब है? जीवन की समापन रेखा की प्रकृति है- कि आप समाप्त हो गए हैं। इसलिए आपको सबसे अच्छा होने की जरूरत नहीं है। आप खुद जितने अच्छे बन सकते हैं, आपके लिए सबसे अच्छा वही है, और वही आपको बनना चाहिए। हर वो चीज जो आप बन सकते हैं, वो आपको जरूर बनना चाहिए।
प्रश्न: मैं उन नकारात्मक विचारों से कैसे निपट सकता हूं जो दूसरे मेरे बारे में रखते हैं?लोग हर चीज के बारे में अपनी राय रखते हैं, लेकिन इससे आपको या किसी और को फर्क क्यों पड़ना चाहिए? उनकी राय हमारे लिए तभी मायने रखेगी, जब हमें खुद यह नहीं पता होगा कि हम क्या कर रहे हैं। दूसरों की राय के साथ संघर्ष करने के बजाय, यह अच्छा होगा कि हम यह स्पष्ट करने का प्रयास करें कि हम क्या कर रहे हैं, और क्यों कर रहे हैं। यदि यह स्पष्टता हमारे भीतर आती है, तो अन्य लोगों की राय हमारे लिए मायने नहीं रखेगी। लोग हमेशा हमारे बारे में राय रखेंगे, और यह उनका अधिकार है। जैसा कि कन्नड़ संत अक्का महादेवी ने कहा है, 'आपने पहाड़ों और जंगल में एक घर बनाया, लेकिन अब आप जानवरों से डरते हैं- आपको वहां जाना ही नहीं चाहिए था। आपने बाजार में एक घर बनाया, और आप बाजार के शोर से डरते हैं- यह आपके लिए सही जगह नहीं है।‘ अब आप एक समाज में रह रहे हैं, और आप डरते हैं कि लोग क्या कहेंगे। यह सामाजिक जीवन का हिस्सा है।लिव-इन रिश्ते में अपनी शर्तों पर जीना सही या गलत, सद्गुरू से जानें जवाब
जीवन में अत्यधिक दु:ख होने के बाद भी वैराग्य क्यों नहीं होता? जानेंकोई न कोई हमेशा कुछ कहेगा। आजकल यह सोशल मीडिया के कारण बढ़ गया है। वे जो चाहें कह सकते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, उसके बारे में अपने जीवन में स्पष्टता लाएं। यदि हमारे अंदर ये स्पष्टता है, तो राय आती-जाती रहेगी और राय बदलती रहेगी। एक बार जब आप दुनिया में सक्रिय होंगे, तो लोग आप पर हर तरह की चीजें फेंकेंगे। जीवन आपकी तरफ क्या फेंकता है, वह कई ताकतों द्वारा तय किया जाता है, लेकिन आप इससे जो बनाते हैं, वह सौ प्रतिशत आपके ऊपर है।सद्गुरु।