क्या बल्ब जलाने और घरों को रोशन करने के लिए बिजली ग्रिड की जगह आलू का इस्तेमाल संभव है?

शोधकर्ता राबिनोविच और उनके सहयोगी पिछले कुछ सालों से लोगों को यही करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

ये सस्ती धातु की प्लेट्स, तारों और एलईडी बल्ब को जोड़कर किया जाता है और उनका दावा है कि ये तकनीक दुनियाभर के छोटे कस्बों और गांवों को रोशन कर देगी।

 

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येरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के राबिनोविच का दावा है, "एक आलू चालीस दिनों तक एलईडी बल्ब को जला सकता है।"

राबिनोविच इसके लिए कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहे हैं। ये सिद्धांत हाईस्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता है और बैटरी इसी पर काम करती है।

वर्ष 2010 में, राबिनोविच ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एलेक्स गोल्डबर्ग और बोरिस रुबिंस्की के साथ इस दिशा में एक और कोशिश करने की ठानी।

गोल्डबर्ग बताते हैं, "हमने 20 अलग-अलग तरह के आलू देखे और उनके आतंरिक प्रतिरोध की जांच की। इससे हमें यह समझने में मदद मिली कि गरम होने से कितनी ऊर्जा नष्ट हुई।"

- आलू को आठ मिनट उबालने से आलू के अंदर कार्बनिक ऊतक टूटने लगे, प्रतिरोध कम हुआ और इलेक्ट्रॉन्स ज़्यादा मूवमेंट करने लगे- इससे अधिक ऊर्जा बनी।

 

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आलू सस्ते हैं, इन्हें आसानी से स्टोर किया जा सकता है और लंबे समय तक रखा जा सकता है।

दुनिया में 120 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं और एक आलू उनका घर रोशन कर सकता है।

राबिनोविच कहते हैं, "हमने सोचा था कि संगठन इसमें दिलचस्पी दिखाएंगे। हमने सोचा था कि भारत के राजनेता हमें हाथों-हाथ लेंगे।"

फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल पहले हुए इस शोध की तरफ दुनियाभर की सरकारों, कंपनियों या संगठनों का ध्यान नहीं गया।

राबिनोविच कहते हैं, "सीधा सा जवाब है, वे शायद इसके बारे में जानते ही नहीं हैं।"

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मामला जटिल?

लेकिन वजह शायद इतनी सीधी नहीं है, मामला कुछ जटिल है।

भौतिक विज्ञानी केडी जयसूर्या और उनकी टीम का कहना है कि केले के तने के हिस्सों को उबालने से एक एलईडी 500 घंटे तक चल सकता है।

हालाँकि ऊर्जा का असली स्रोत आलू या केले का तना नहीं है।

ऊर्जा तो ज़िंक के घिसने से पैदा होती है। इसका मतलब कुछ देर बाद ज़िंक दोबारा लगाना होगा।

लेकिन ज़िंक सस्ता है और ज़िक इलेक्ट्रोड लगभग पांच महीने तक चलता है और इसकी कीमत एक लीटर केरोसीन के बराबर आती है।

कम से कम श्रीलंका में तो एक लीटर केरोसीन एक परिवार दो रात में ही इस्तेमाल कर लेता है।

अगर ज़िंक उपलब्ध नहीं है तो मैग्नीशियम और लोहे को भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।


Posted By: Satyendra Kumar Singh