रिश्‍तो का टूटना या प्‍यार में रूठना दोनों एक ही बात नहीं है। आप रूठे को मना सकते हैं पर टूटे को जोड़ना आसान नहीं होता। औश्र रिश्‍ते बड़े नाजुक होते हैं ये जानते हुए भी अक्‍सर हरेक से कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता है जो उनमें दरार डाल सकता है। तो ऐसा क्‍या करें कि ऐसी गलती को सुधर सकें। इसका एक ही मंत्र है कि आपके पास हो पक्‍का इरादा कि रिश्‍ता तोड़ना नहीं है तो फिर बस ये पांच तरीके अपनायें और टूटे रिश्‍ते और रूठे यार का पास लायें।

जानम समझा करो: जीहां ये सबसे खास बात है पर ये उसके लिए है जो रिश्ता जोड़े रखना चाहता है। आपसी समझ की कमी या नासमझी बड़ी घातक होती है प्यार में तो सबसे पहले ये समझने की कोशिश कीजिए कि वो क्या वजह है जो आपके रिश्तों में दूरी ला रही है और फिर उसे दूर कीजिए। देखिएगा ऐसी वजह के दूर जाते ही आपका प्यार आपके करीब आ जायेगा।
अच्छा चलो जी बाबा माफ कर दो: एक बार वजह समझ आ गयी और आपने उसे दूर कर दिया या दूर करने का फैसला कर लिया तो दूसरा कदम हे माफी मांगने और देने का। गलतियों को पकड़ कर मत बैठिए, साथी की गलती है तो उसे भुला दीजिए और अगर आपकी है तो माफी मांग लीजिए। क्योंकि प्यार में कोई पराया नहीं होता और अपने को झुकाने में जीत कैसी और अपनों के आगे झुकने में हार कैसी। क्योंकि ये मामला आत्म सम्मान का नहीं आत्मीयता का है। 

ये वादा रहा: गलती भी मिल गयी और माफी भी तो वादा कीजिए अपने से और अपने साथी से कि अब आप इन गलतियों को नहीं दोहरायेंगे और अब रूठ कर दूर जाने की बजाय आपस में मुश्किल को सुलझायेंगे। ना एक दूसरे को ये दर्द दोबारा देंगे ना जुदाई को किसी मसले का हल बनायेंगे।  
मुझे अपनी प्रीत में रंग दे: जीहां जब आपके लिए है कोई इतना खास कि उससे दूर होने का ख्याल ही जानलेवा है। उसे मनाने के लिए आप इतना कुछ कर रहे हैं तो फिर उससे अलग आपका वजूद क्या तो खुद को उसी के रंग में रंग लीजिए बदल डालिए खुद को बन जाइए वैसे जैसा आपका पार्टनर चाहता है। जब आप का हर कदम होगा साथी की पसंद का दो अलगाव होगा ही नहीं। 

कह दो ना: जब आप दिल की बात दिल में रखते हो तो फिर मुश्किलें आती ही हैं अपनी बात कह दीजिए और सामने वाले से भी कहिए कि वो क्या चाहता है खुल कर कह दे। संवाद का ना होना मुश्किल पैदा करता है पर संवाद का होना कुछ देर के लिए भले ही गुस्सा दिलाये पर आपको स्पष्ट बता देता है कि मुश्किल कहां है। और जब साथ निभाना है तो दिल की बात छुपाना क्यों और सामने वाले की बात सुनने से गुरेज या सुन कर खफा होना क्यों। तो आखिरी पड़ाव है कुछ अपनी कहें और कुछ उनकी सुनें।

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Posted By: Molly Seth