वर्ज़िश या एक्सरसाइज़ का चलन हाल के दिनों में काफ़ी बढ़ा है। लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है और फ़िट रहने की चाहत भी। कसरत के बारे में कई तरह के मिथक हैं।


लेकिन विज्ञान के आधार पर जानें कसरत के बारे में। सात दिलचस्प बातें।1. वर्ज़िश से आईक्यू बढ़ता हैये धारणा काफ़ी हद तक सही है कि कसरत से बौद्धिक क्षमता बेहतर होती है। स्कूल पैदल चलकर जाने वाले बच्चों की एकाग्रता बेहतर होती है और इम्तहान में उनके अच्छे नंबर भी आते हैं। इसी तरह, कई बुज़ुर्ग जो हल्की कसरत करते हैं और चलते फिरते रहते हैं, उनमें दिमागी कमज़ोरी होने का ख़तरा अन्य बुज़ुर्गों के मुक़ाबले आधा होता है।मतलब साफ़ है। जब आप वर्ज़िश करते हैं, तो आपके दिमाग़ तक ख़ून की सप्लाई भी ज़्यादा होती है। इससे दिमाग़ की तंत्रिकाओं का विकास होता है। ये हमारी बौद्धिक क्षमता बढ़ाता है और दिमाग के स्वस्थ रखने के लिए ज़रूरी होता है।2. एक्सरसाइज़ के समय संगीत सुनने का असर
ज़्यादा खेल-कूद करने वाले अक्सर मांशपेशियों की ऐंठन से परेशान होते हैं। इसका अंग्रेज़ी शब्द क्रैम्प काफ़ी चलन में है। बहुत बार हम सुनते हैं कि क्रैम्प्स की वजह से फलां खिलाड़ी को रेस्ट देना पड़ा। दूसरे खिलाड़ी को खिलाना पड़ा।


वैज्ञानिकों ने अमरीका के फ़ुटबॉल खिलाड़ियों में ऐसा देखा कि गर्मी में क्रैम्प ज़्यादा होते हैं। इससे इस धारणा को बल मिला कि पसीने के कारण शरीर में नमक की कमी हो जाने से ऐसा होता है। लेकिन, सर्द मौसम में एक्सरसाइज़ करने वालों को भी यही दिक़्क़त होती है। इसलिए ये दावा ग़लत साबित हुआ। मतलब साफ़ है। एक्सरसाइज़ की वजह से होने वाली ऐंठन, नमक की कमी का नतीजा नहीं। इसका गर्मी से कोई ताल्लुक नहीं।वैज्ञानिक अब तक, नमक की कमी और क्रैम्प के बीच संबंध की सच्चाई नहीं तलाश पाए हैं। इसलिए सुझाव यही दिया जाता है कि कैम्प्स हों तो खाने में नमक बढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, इसके लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ ही करनी चाहिए।4. क्या वर्ज़िश से पहले स्ट्रेचिंग ज़रूरी है?स्पोर्ट्स शूज़ बनाने वाली कंपनियां अक्सर दावे करती हैं कि उनके जूते से आपके लिए दौड़ना आसान होगा। आज बाज़ार में कई तरह के स्पेशल रनिंग शूज़ मिलते हैं। दुकानों पर आपको ऐसे एक्सपर्ट भी मिल जाएंगे जो सही जूता ख़रीदने में आपकी मदद करेंगे।पर तमाम रिसर्च से ये बात साफ़ हो चुकी है कि रनिंग एक्सरसाइज़ में जूतों का कोई ख़ास रोल नहीं। आपको जो भी आरामदेह लगे, वो जूता पहनकर दौड़िए या एक्सरसाइज़ कीजिए। स्पोर्ट्स शूज़ बनाने वाली कंपनियां तो दावे करती रहेंगी।

6. हम 9 सेकेंड से कम समय में 100 मीटर दौड़ सकेंगे?अक्सर लोग दावे करते हैं कि डिप्रेशन से बचना हो तो वर्ज़िश करो, योग करो, दौड़ो, खेलो-कूदो। सेहत के बारे में रिसर्च जमा करने वाली अंतरराष्ट्रीय ग़ैर सरकारी संस्था कॉकरेन ने इस बारे में कई देशों से 30 ट्रायल किए हैं।पता चला कि एक्सरसाइज़ आपको डिप्रेशन से बचने में बेहद मामूली तौर पर ही मददगार साबित होती है। वैसे सेहत के लिए वर्ज़िश अच्छी है। मगर ये सोचना कि डिप्रेशन से भी निपटने में मदद मिलेगी, ऐसा नहीं है।

Posted By: Satyendra Kumar Singh