कैसे करें होलिका दहन और जानें क्या है इसकी खास बातें
ऐसा बिलीव है कि होली का पूजन करने से पुण्य मिलता है और घर और समाज में सुख शांति के साथ धन धान्य में भी वृद्धि होती है. आइए जानते हैं कदम दर कदम होलिका दहन की प्रक्रिया और विशेषता. होलिका दहन का मुहूर्त
पहले इकठ्ठी करें पूजा सामग्री, जिसके लिए चाहिए रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, छोटे-छोटे उपलों की माला आदि. गुरूवार को पूर्णिमा तिथि में 5 मार्च 2015 को होलिका दहन का मुहूर्त इस प्रकार रहेंगे: होलिका दहन का शुभ मुहूर्त जयपुर व कोटा में सायं 6.26 से 6.38 तक, जोधपुर में सायं 6.38 से 6.50 तक, उदयपुर व बीकानेर में सायं 6.35 से 6.47 तक, अजमेर में सायं 6.31 से 6.43 तक, श्रीगंगानगर में सायं 6.34 से 6.46 तक. दिल्ली में सायं 6.19 से 6.31 तक, कोलकाता में सायं 5.37 से 5.49 तक, मुम्बई में सायं 6.42 से 6.54 तक तथा वाराणसी में सायं 5.59 से 6.11 तक रहेगा. जबकि दोपहर 12.00 बजे से दोपहर बाद 1.30 बजे तक राहुकाल वेला रहेगी इसमें शुभकार्य आरम्भ नहीं करने चाहिए.
सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है. इसके बाद होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को लेकर सात परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. सुगंधित फूलों का प्रयोग कर पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करके पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है. इसके बाद होलिका में कई वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उनमें खास तौर पर कच्चे आम, नारियल, सात प्रकार के धान्य यानी गेहूँ, उडद, मूँग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि से होली की पूजन किया जाता है. इस पूजन के समय ध्यान में रखने योग्य बात यह है कि आपका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखकर ही पूजा में उपरोक्त सामग्री का प्रयोग करें. साथ ही होली के समय आने वाली नई फसलों के धान्य को खासकर होली में अर्पित करके पूजन किया जाता है.
सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। अंत में सभी पुरुष कुँकू का टीका लगाते है और महिलाएँ होली के गीत गाती है. कहते हें कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन सुबह घर में लाने से घर का और परिवार के सभी सदस्यों का अशुभ शक्तियों से बचाव होता है.होलिका की कहानी
कहते हैं कि वर्षो पूर्व एक राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसका आदेश था कि सारी प्रजा ईश्वर की नहीं उसकी आराधना करे. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा ना मान कर ईश्वर पर अपनी आस्था बनाए रखी. इसलिए हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र
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