ब्रसेल्स में हुई हीरों की सबसे बड़ी क्लिक करें लूट के हीरे क्या कभी वापस मिल सकते हैं? क्या चोर 500 लाख डॉलर की कीमत के ये हीरे बेचकर भागने में सफल हो जाएंगे?

कलाकृतियों के चोरों को मशहूर चीज़ों को बेचने में बेहद दिक्कत का सामना करना पड़ता है. क्योंकि कोई भी कला व्यापारी पिकासो या रेमब्रेन्ट की कलाकृति को देखते ही पहचान जाएगा कि ये चोरी की है. लेकिन क्या चोरी के हीरों की पहचान हीरों के व्यापारी भी इतनी ही आसानी से कर सकते हैं.

हीरों के प्रकार
अनगढ़ हीरों की कई विशेषताएं होती हैं. वो अलग-अलग बनावट, रंग और आकार के होते हैं. उन्हें मोड़ा जा सकता है और दो अलग हीरों को साथ में जोड़कर रखा जा सकता है. सामान्यतः हम मानते हैं कि हीरे पारदर्शी होते हैं या नीलिमा लिए सफ़ेद होते हैं. लेकिन हीरे नीले, भूरे, लाल, पीले, गुलाबी, काले और हरे भी हो सकते हैं.

हीरे का रंग इसमें कार्बन के अलावा मौजूद अन्य पदार्थ की मात्रा और विकिरण पर निर्भर करता है. अनगढ़ हीरे की बनावट से ये पता चल सकता है कि वो किसी खान से निकला या है किसी नदी या तट से मिला है. पानी से मिले हीरों के किनारे खान से मिले हीरों के मुकाबले चिकने होते हैं.

क्या चोरी पकड़ी जा सकती है?
सैद्धांतिक रूप से ये कहा जा सकता है कि कोई बेहद पारखी नज़र का व्यापारी ही उन हीरों को पहचान सकता है जिनकी चोरी के बारे में उसे पता हो. तराशे गए हीरे को देखकर ये पहचानना और ज़्यादा मुश्किल है कि वो कहां से आया है. हालांकि हीरों के व्यापार की प्रकृति को देखते हुए अनगढ़ हीरों को पकड़ पाना भी मुश्किल है.

ब्रसेल्स के नज़दीक एन्टवर्प हीरों की छंटाई का केंद्र है. दुनिया भर की खदानों से चोरी के हीरे यहां आते हैं. आगे भेजे जाने से पहले यहां उनकी छंटाई और वर्गीकरण किया जाता है.

इसी तरह ब्रसेल्स अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से चुराए गए हीरों का वजन, रंग और पारदर्शिता के आधार पर वजन किया जाएगा. तराशे गए हीरों के मामले में ‘कट’ के आधार पर.

लेकिन चोरी गए हीरों के बारे में इतनी जानकारी नहीं है कि उन्हें ‘ई-फ़िट’ बनाया जा सके. अगर चोरी के हीरों को देखकर नहीं पहचाना जा सकता तो क्या काग़ज़ी कार्रवाई के आधार पर उन्हें पकड़ा जा सकता है?

व्यापार पर रोक संभव है?
संयुक्त राष्ट्र ने अनगढ़ हीरों के व्यापार पर नज़र रखने के लिए एक विधि विकसित की है, ताकि हिंसा के लिए इनके पैसे का इस्तेमाल न हो सके.अनगढ़ हीरों के निर्यात से पहले देश की सरकार से उन्हें एक प्रमाण पत्र हासिल करना ज़रूरी है कि ये हीरा कहां से निकला या पाया गया है.

ये प्रमाण पत्र कहता है कि हीरों का पैसा अपराध को बढ़ावा देने में नहीं लगाया गया है. सिद्धांत रूप में जो भी देश किंबरले विधि का हिस्सा हैं उन्हें इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने होते हैं. लेकिन व्यवहार में कुछ देश, जैसे कि वेनेज़ुएला, ऐसा नहीं करते.

किंबरले विधि सिर्फ़ सीमा पार जा रहे अनगढ़ हीरों पर लागू होती है. ये देश के अंदर अनगढ़ हीरों के व्यापार पर लागू नहीं होती. ऐसे व्यापार को चालान के साथ प्रमाणित किया जा सकता है जो कि आसानी से नकली बनाए जा सकते हैं.

कहां जा सकते हैं चोरी के हीरे?
मूल्य के लिहाज से भारत दुनिया भर के 90% हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग करता है. इसके अलावा कटिंग और पॉलिशिंग के मुख्य केंद्र चीन, इसराइल और अमरीका हैं. चोरों को हीरों को इनमें से किसी देश में ले जाना होगा. अगर एक बार वो वहां पहुंच गए तो जाली कागज़ों के आधार पर उन्हें बेचा जा सकता है.

हीरों पर लेज़र से ऐसा निशान लगाया जा सकता है जो नंगी आंखों से दिखाई न दे. अमेरिका की एक हीरा उत्पादक और वितरण कंपनी लज़ारे कपलान ने ऐसी एक विधि विकसित की है. हालांकि अभी तक ये पता नहीं चला है कि चोरे गए हीरों पर ऐसा कोई निशान लगाया गया था या नहीं.

लेकिन जवाहरात के पूर्व दलाल क्रिस्टोफ़र हॉर्मोज़िओस ज़ोर देकर कहते हैं, ‘हीरे पर कैसे भी निशान लगा हो, उसे निकाला जा सकता है’. लेखक इयान इस्माइली कहते हैं, ‘ये लोग नौसिखिये नहीं हैं. ये अभी इन हीरों से मुक्ति पाने के बारे में नहीं सोच रहे होंगे. बहुत संभव है कि उन्होंने बच निकलने के रास्ते की पहले से ही योजना बना रखी हो’. वो कहते हैं, ‘पॉलिशिड के बजाय अनगढ़ हीरे होने की ज़्यादा संभावना है. हीरे शायद स्विट्ज़रलैंड से भारत ले जाए जाने थे’.

क्या करेंगे चोरी?
चोरों के पास कई विकल्प हैं. पहला तो ये कि हीरों को जल्द से जल्द बेच दें. हालांकि ऐसा करने से उन्हें हीरों की जायज़ कीमत की बजाय कई गुना नुक्सान उठाना पड़ सकता है.

दूसरा विकल्प है कि उन्हें फ़ैक्ट्रियों में बेच दें, जहां हीरों को तराशा और पॉलिश किया जाएगा. एक बार हीरा तराश लिया गया तो फिर उसकी पहचान आसानी से छुपाई जा सकती है.

इस्माइली कहते हैं, ‘अगर चोर भारत के कस्टम को पार कर हीरों को ले जाने में सफल हो गए तो वो उन्हें किसी फ़ैक्ट्री को बेच सकते हैं और इससे समझदारी का कोई काम नहीं हो सकता’.

अगर एक बार हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग हो गई तो फिर उनके असली मालिकों पर पहुंचने की कोई संभावना नहीं है. चोर या जिसे वो तराशे गए हीरे बेचते हैं वो कभी नहीं चाहेगा कि इनकी कीमत कम हो.

इसके बजाय बेचने से पहले हीरों की असल पहचान को छुपाया जा सकता है. ये हो सकता है भारत और दुबई के बीच आधा दर्जन बार तक हीरों का व्यापार कर, जिसे हीरों का गोल-चक्कर (round-tripping) भी कहा जाता है.

हॉर्मोज़िओस कहते हैं कि, ‘हीरों को छोटी मात्रा में दुनिया की कई शहरों में बेचा जाएगा’. हकीकत ये है कि इनके मिल जाने की संभावना बहुत कम है.

 

 

Posted By: Garima Shukla