Hotel Mumbai Review: आतंक के साए में साहस का अनदेखा प्रदर्शन, अनुपम खेर बने फिल्म की जान
होटल मुंबई - रेटिंग: 3 स्टार
प्रमुख कलाकार : अनुपम खेर, देव पटेल,निर्देशक : एंथोनी मारसअवधि : 2 घंटे 8 मिनटकहानीसमुद्र के जरिए पाकिस्तान से भारत में दाखिल हुए दस आतंकियों ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, लियोपोल्ड कैफे, ताज और ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, कामा अस्पताल और नरीमन हाउस को निशाना बनाया था, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। इस घटना पर हिंदी में कई फिल्में बनाई जा चुकी हैं, लेकिन 'होटल मुंबई' ताज होटल पर किए गए हमले के दौरान वहां छाए खौफ के माहौल, स्टाफ की बहादुरी और मेहमानों की सुरक्षित निकासी पर केंद्रित है। ताज के स्टाफ ने 'अतिथि देवो भव:' का पालन करते हुए अपने मेहमानों की रक्षा की थी।
हमले के दौरान होटल के भीतर का हाल
फिल्म में बाकी हमलों का संक्षिप्त जिक्र है। फोकस ताज के अंदरूनी माहौल और आतंकियों से जूझते निहत्थे लोगों के संघर्ष पर है। साल 2009 में आई डॉक्यूमेंट्री 'सरवाइविंग मुंबई' से प्रेरित यह फिल्म उस काले दिन की याद फिर दिला देगी। ऑस्ट्रेलियाई फिल्ममेकर एंथोनी मारस की यह डेब्यू फिल्म है। उन्होंने माहौल को रियल बनाए रखने का यथासंभव प्रयास किया है और असल लोगों की पहचान उजागर न करने के लिए इन किरदारों को काल्पनिक बताया है। शेफ ओबराय (अनुपम खेर) अनुशासनप्रिय और नियमों को लेकर सख्त है। वह गलत जूते पहनकर आने के लिए वेटर अर्जुन (देव पटेल) को वापस जाने के लिए कहते हैं। गर्भवती पत्नी और एक छोटा बच्चा घर पर होने की दुहाई देते हुए अर्जुन उनसे शिफ्ट में काम करने देने का आग्रह करता है।
72 घंटों के भीतर कैसे दहली मुंबई
आने वाली आपदा से बेखबर सभी रोजमर्रा के काम में व्यस्त होते हैं। एक विदेशी दंपती अपने नवजात बच्चे के साथ वहां आता है। दंपती होटल के रेस्त्रां में खा-पी रहे होते हैं और उनका बच्चा आया के साथ कमरे में होता है। उसी दौरान चार आतंकी होटल में घुस आते हैं और ताबड़तोड़ गोलाबारी शुरू कर देते हैं। कोई कुछ समझ पाता, तब तक काफी लोगों को वे मौत के घाट उतार देते हैं। फिल्म होटल की कार्यप्रणाली की झलक देते हुए असल मुद्दे पर आ जाती है। आतंकियों के अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ होने, पाकिस्तानी आका से फोन पर निर्देश लेने, आका का उन्हें हमले के बदले जन्नत का ख्वाब दिखाने का चित्रण है। आतंक के उस माहौल में कदमों की आहट या लोगों की आवाजाही को लेकर दोनों पक्षों की बैचेनी, सर्तकता, खौफ और सिसकी को उभार पाने में निर्देशक कामयाब रहे हैं। इसमें पुलिस की मदद, टीवी चैनल्स की भूमिका, एनएसजी कमांडो के देरी से आने जैसे पहलुओं को भी उठाया गया है। होटल के गलियारे से भागने का प्रयास करते लोगों को देखकर आपकी सांसें थम जाती हैं।
अनुपम खेर का किरदार उस समय ताज के शेफ हेमंत ओबराय से प्रेरित है। सिख वेटर के तौर पर देव पटेल की परफॉर्मेंस दिल को छू जाती है। मुंबई को दहला देने वाले उन 72 घंटों के कुछ असली फुटेज का इस्तेमाल उन जख्मों को ताजा करता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, साउंड डिजाइन और बैकग्राउंड म्यूजिक माहौल के अनुरूप है। हर पल आप डर और तनाव को महसूस कर पाते हैं। मुंबई हमले को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने अंजाम दिया था, पर फिल्म में आतंकियों के बैकग्राउंड की जानकारी नहीं दी गई है। कुल मिलाकर, यह फिल्म होटल के उन कर्मचारियों के साहस और सूझबूझ को सलाम करती है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने मेहमानों की रक्षा की।द्वारा: स्मिता श्रीवास्तव