Holika Dahan Katha 2022: पढ़िए होलिका दहन की पूरी कथा, शाम 6:48 बजे से रात 9:55 बजे तक रहेगा मुहूर्त
पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Holika Dahan 2022 Katha in Hindi ज्योतिष शास्त्र मुहूर्त ज्ञान के अनुसार प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भद्रारहित काल के निशा मुख में होलिका दहन शुभ फलदायक होता है।होलिका दहन के लिए भद्रा का विचार विशेष रूप से किया जाता है, भद्रा रहित समय मे होलिका दहन करना शुभ माना जाता है।किसी भी अवस्था में होलिका दहन भद्रा के मुखकाल में नहीं किया जाना चाहिए।इसके अलावा चतुर्दशी तिथि,प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पहले भी होलिका दहन नहीं किया जाना चाहिए। इस वर्ष पंचांग के अनुसार 17 मार्च 2022,गुरवार को भद्राकाल अपराह्न 1:30 बजे से आरम्भ होगी जोकि रात्रि तक रहेगी जिसका निवास पृथ्वीलोक में रहेगा। पूर्णिमा तिथि अपराह्न 1:30 बज़े से लगेगी.उपरोक्त निर्णय के अनुसार फाल्गुनी पूर्णिमा केवल 17 मार्च 2022, गुरुवार को ही प्रदोष व्यापिनी है इस दिन प्रदोषकाल भद्रा से व्याप्त है भद्रा निशीथ काल के बाद समाप्त होगी. ऐसे में *"भद्रा मुख" के काल को त्याग कर पुच्छकाल में होलिका दहन किया जाना चाहिए. भद्रा का पुच्छ काल रात्रि 8:58 बज़े से रात्रि 9:55 बज़े तक है. इस दिन होलिका दहन के समय पू. फा.नक्षत्र भी रहेगा।
Holika Dahan 2022 Date, Puja Vidhi, Mantra, Arti, Muhuratहोलिका पूजन
सामग्री:- एक लोटा जल,माला,रोली,चावल,गन्ध, पुष्प,कच्चा सूत, गुड़,सबूत हल्दी,मूंग,बताशे,गुलाल,नारियल,गेहूं की बालियाँ आदि।
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है।इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके बैठकर होलिका का पूजन करना चाहिए।बड़गुल्ले की बनी चार मालाएं इनमें से एक पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की,तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी माला अपने घर परिवार की होलिका को समर्पित कर कच्चे सूत की तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुएं होली को समर्पित करें।गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें।पूजन के बाद जल से अर्ध्य दे तथा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित करें।होली की अग्नि में सेंक कर लाये गए धान्यों को खाएं,इसके खाने से निरोगी रहने की मान्यता है।ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि तथा राख को अगले दिन प्रातः काल घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा इस राख को शरीर पर लेपन करना भी कल्याणकारी रहता है।
होली की राख से लाभ
किसी ग्रह की पीड़ा होने पर होलिका दहन के समय देशी घी में भिगोकर दो लोंग के जोड़े,एक बताशा और एक पान के पत्ते पर रखकर अर्पित करना चाहिए।अगले दिन होली की राख लाकर अपने शरीर पर तेल की तरह लगाकर एक घंटे बाद हल्के गर्म पानी से स्नान करना चाहिए।ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
होलिका दहन कथा Holika Dahan ki Kahani
नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था।दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था।वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें,लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रहलाद परम विष्णु भक्त था।भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए।हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भक्ति छोड़ने को कहा परंतु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका। कई बार समझाने के बाद भी जब प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया।कई कोशिशों के बाद भी वह प्रहलाद को जान से मारने में नाकाम रहा।बार बार की कोशिशों से नाकाम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो गया। इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली,जिसे भगवान शंकर से ऐसा वरदान मिला था जिसके अनुसार अग्नि उसे जला नहीं सकती थी।तब यह तय हुआ कि प्रहलाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्नि में स्वाहा कर दिया जाएगा। होलिका अपने इस वरदान के साथ प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से होलिका जल गई और प्रह्लाद की जान बच गई।इसी के बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।