होलिका दहन में भद्रा का परित्याग कर देना चाहिए। यदि कुयोगवश यदि जला दी जाय तो वहां के राज्य नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पादों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।

होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है, जो इस वर्ष 20 मार्च को है। इसका मुख्य सम्बन्ध होली के दहन से है। जिस प्रकार श्रावणी को ऋषिपूजन, विजयादशमी को देवीपूजन, दीपावली को लक्ष्मीपूजन के बाद भोजन किया जाता है, उसी प्रकार होलिका के व्रत वाले व्यक्ति हालिका दहन की ज्वाला देखकर भोजन करते हैं।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

होलिका दहन में भद्रा का परित्याग कर देना चाहिए। यदि कुयोगवश यदि जला दी जाय तो वहां के राज्य, नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पादों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं। 20 मार्च को भद्रा दिन में 9 बजकर 19 मिनट से लगकर रात्रि 8 बजकर 12 मिनट तक है, अतः रात्रि 8 बजकर 12 मिनट के बाद होलिका दहन करना लाभप्रद रहेगा।

होलिका दहन पर भगवान शिव से जुड़ी कथा 


भविष्यपुराण के अनुसार, सतयुग में ढुण्ढा नाम की राक्षसी ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर छोटे बालकों को पीड़ित करना शुरू किया। महाराज रघु ने इसके निराकरण का उपाय वशिष्ठ ऋषि से पूछा। ऋषि ने बतलाया कि सूखी लकड़ी एवं उपला आदि का संचय करके रक्षोघ्न मंत्रों से हवन करते हुए उसमें आग लगानी चाहिए। ताली बजाते हुए किल-किल शब्द का उच्चारण करना चाहिए। अग्नि की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। दान देना तथा हास्य—विनोद करना चाहिए। इसी से वह भस्मीभूत होगी।

इसी विधान को करने से ढुण्ढा नाम की राक्षसी भस्म हुई। इस प्रकार करने से ढुण्ढा के दोष शान्त हो जाते हैं और होली के उत्सव से व्यापक सुख-शान्ति होती है। 

होलिका दहन का सामाजिक महत्व


इसी अवसर पर नवीन धान्य (जौ, गेहूं और चना) की फसलें पककर तैयार हो रही होती हैं और समाज में उनके उपयोग में लेने का प्रयोजन भी उपस्थित हो जाता है; किन्तु धर्मप्राण हिन्दू यज्ञेश्वर को अर्पण किए बिना नए अन्न को उपयोग में नहीं लाते।

अतः होलिका दहन के दिन समिधास्वरूप उपले आदि का संचय करके उसमें यज्ञ की विधि से अग्नि का स्थापन, प्रतिष्ठा, प्रज्वालन और पूजन करके जौ, गेहूं आदि के चरु स्वरूप बालियों की आहूति और हुतशेष धान्य को घर लाकर प्रतिष्ठित करते हैं। इससे सभी प्राणी हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ होते हैं। इस प्रक्रिया को वैदिक भाषा में 'नवान्नेष्टि' यज्ञ कहते हैं।

होली सम्मिलन, मित्रता, एवं एकता का पर्व है। इस दिन द्वेष भाव भूलकर सबसे प्रेम और भाई चारे से मिलना चाहिए। एकता, सद्भावना एवं सोल्लास का परिचय देना चाहिए। यही इस पर्व का मूल उद्देश्य है एवं संदेश है।

— ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र

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Posted By: Kartikeya Tiwari