झारखंड के जंगलों की लड़की जर्मनी में चमकी
पुरानी हाफ पैंट और टी-शर्ट, जंगली बांस से बनी स्टिक, मामूली गेंद, लाल रिबन से गूंथी गई चोटी, उबड़- खाबड़ पथरीला मैदान और गांव की लड़कियों के साथ घंटों की दौड़. बिगन की ज़िंदगी की यह तस्वीर रही है.वह बताती हैं कि गांव की माटी ने उनके हौसले को उड़ान दी. अब वह देश की सीनियर टीम में खेलना चाहती हैं. मंज़िल पाने के लिए दिन-रात मेहनत करना चाहती हैं. एक उम्दा हॉकी खिलाड़ी के साथ-साथ बिगन अच्छी फुटबॉलर भी हैं.'तुम गोल करो, मैं बचाऊंगी'जर्मनी के मोंशेंग्लाबाख़ में हुए जूनियर हॉकी विश्वकप में झारखंड के एक सुदूर गांव की इस लड़की ने पेनल्टी शूटआउट में छह बार गोल बचाकर भारत को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई.बीबीसी से खास मुलाकात में बिगन ने मैच के उन रोमांचक लम्हों को साझा किया.
उन्होनें बताया, "मैंने साथियों से कहा था कि तुम गोल करो, मैं बचाऊंगी." जर्मनी से खेलकर बिगन जब रांची लौटीं, तो उनका शानदार स्वागत किया गया.'चक दे' से चमका सपना
बिगन पहले राइट हाफ़ से खेलती थी लेकिन शुरुआती दौर में ही उनकी प्रशिक्षक फुलेकरिया नाग ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. उन्हें गोलकीपर बनाया. अभी एस के मोहंती उनके प्रशिक्षक हैं.बिगन ने पढ़ाई भी जारी रखी है. फिलहाल वह खूंटी बिरसा कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं.जूनियर इंडिया टीम में जब उनका चयन हुआ, तो उन्होंने कड़ी मेहनत की. झारखंड की दूसरी खिलाडि़यों को आप जानती हैं? इस सवाल पर बिगन की आंखें चमक जाती हैं. उन्होंने कहा, ''अरे सुमराई दी हैं न, अंसुता लकड़ा दी हैं. हेलेन सोय हैं. सुमराय टेटे तो भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान और कोच भी रही हैं. मेरी भी दिली तमन्ना है सीनियर टीम से खलने की. गांव और देश की माटी की शान बढ़ाई तो मेरी ज़िंदगी सफल हो जाएगी.''