जब हम और आप दीपावली के पटाखे छुड़ा कर फारिग हो जाते हैं उसके बाद दीपावली के अगले दिन मध्‍य प्रदेश के इंदौर शहर के पास गौतमपुरा इलाके में बारूद के गोलों की बारिश होती है। ये सब कुछ एक परंपरा के लिए होता है और इसे हिंगोत उत्‍सव के लिए युद्ध के रूप किया जाता है। जहां दो दल एक दूसरे पर हिंगोत नाम के फल को बारूद के गोलों में बदल कर एक दूसरे पर फेंकते हैं।

पड़ेवा को खेला जाता है हिंगोत युद्ध
मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित गौतमपुरा में दीपावली के अगले दिन पड़ेवा की शाम को देवनारायण मंदिर के सामने बने मैदान पर चर्चित रोमांचकारी हिंगोट युद्ध होता है। यहां पर तुर्रा और कलंगी नाम से दो दलों के योद्धा एक-दूसरे पर हिंगोट फेंकते हैं। स्थानीय लोग अपने काम धंधे से समय निकाल कर इस परंपरा के लिए हजारों रुपए खर्च कर के हिंगोट युद्ध की तैयारी करते हैं। ये आयोजन हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग साथ मिलकर कर करते हैं और समापन पश्चात एक-दूसरे के गले मिलकर भाईचारे की मिसाल भी पेश करते हैं।

क्या है हिंगोट
हिंगोट एक नींबू आकार का फल है, जो ऊपर से नारियल की तरह सख्त होता है और इसके अंदर गूदा होता है। ये फल सिर्फ गौतमपुरा के पास देपालपुर इलाके में ही पाया जाता है। जंगल में हिंगोरिया नामक पेड़ से इसे तोड़कर लाने के बाद ऊपर से साफ किया जाता है। इसके बाद इसमें एक बारीक और दूसरा बड़ा छेद कर अंदर के गूदे को निकाल कर सुखा लेते हैं,फिर इसमें बारूद भर कर एक छेद को पीली मिट्टी से भर देते हैं और दूसरे छेद में बारूद की बत्ती लगा देते हैं। निशाना सीधा लगे इसके लिए इस पर आठ इंची बांस की कीमची बांध देते हैं।

सजधज कर आते हैं योद्धा
हिंगोट युद्ध के लिए योद्धा सजधज कर सिर पर साफा, हेलमेट, एक हाथ में लकड़ी की मशाल, बचाव के लिए ढाल और एक कंधे पर हिंगोट से भरा झोला लेकर ढोल-नगाड़े के साथ नाचते-गाते मैदान पर आते हैं। इसके बाद भगवान देवनारायण मंदिर पहुंचकर दर्शन करने के बाद मैदान पर इकट्ठे होते हैं और संकेत मिलते ही युद्ध आरंभ कर देते हैं। हिंगोट युद्ध में घायल होने पर योद्धा और दर्शकों के इलाज के लिए मैदान के दोनों छोरों पर एम्बुलेंस और डाक्टरों की एक टीम भी मौजूद रहती है।

 

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Posted By: Molly Seth