'सत्या' 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' व 'अलीगढ़' जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से पहचान बनाने वाले मनोज बाजपेयी का हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में विशिष्ट स्थान है। वे इंडस्ट्री के चुनिंदा कलाकारों में शामिल हैं जो हिंदी भाषा के महत्व को लेकर संजीदा हैं।

मातृभाषा बोलने में कैसी झिझक
एक भाषा जिसे सुनकर हम बोलना और समझना सीखते हैं,वो शब्द जिनसे हम बचपन से घिरे रहते हैं और वो भाषा जिसे बोलने में हम हमेशा ही सहज महसूस करते हैं, वही तो होती है मातृभाषा। यह तो वही है न जिसके साथ हम बड़े हुए हैं। मेरी मातृभाषा भोजपुरी है, हिंदी में मेरी पढ़ाई-लिखाई हुई है, तो ये तो मेरे लिए गौरव की बात है। मैं इसे किसी भी कीमत पर किसी और भाषा से कमतर नहीं आंक सकता। हिंदी हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और मुझे नहीं लगता कि अगर हम अपने ही देश में हिंदी में बात करते हैं तो इसमें कुछ भी अचंभित करने वाला है। हिंदी सदियों से हमारा गौरव रहा है और हमेशा रहेगा। चाहे कितने भी तरह के बदलाव हो जाएं, लेकिन जो अहमियत इसकी है, वो हमेशा रहेगी। मुझे तो ये समझ ही नहीं आता कि कैसे किसी को अपनी ही मातृभाषा बोलने में झिझक हो सकती है? भाषा को लेकर भेदभाव करने का कोई मतलब ही नहीं है। यह बिल्कुल बेबुनियाद है। बड़ी हैरानी की बात है कि लोगों को अपने ही देश में अपनी ही मातृभाषा बोलने से एतराज होता है। वे कतराते हैं, इसका इस्तेमाल करने से। मसलन- अगर हम अंग्रेजी भाषा की ही बात करें, तो मेरे विचार में
हिंदी को उपेक्षित नहीं किया जा सकता
इसे हिंदी के मुकाबले ज्यादा तवज्जो देना किसी व्यक्ति के अंदर चल रहे अंतद्र्वंद्व को दर्शाता है। इस द्वंद्व और अंतद्र्वंद्व का लेना-देना उससे है, जो अंग्रेजी के बारे में ज्यादा सोचता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए यह कभी चिंता का विषय रहा ही नहीं क्योंकि मैंने अंग्रेजी को इतनी तवज्जो दी ही नहीं, और ऐसा भी नहीं है कि मैंने इसे सीखा नहीं। लेकिन अंग्रेजी मेरे लिए हमेशा एक टूल, एक स्किल की तरह रही है यानि यह बातचीत का वो माध्यम रहा जिसके बारे में मुझे लगता था कि हां, इससे मेरा काम हो जाएगा। इसके न आने की वजह से कुछ रुकेगा नहीं। अंग्रेजी तो आम बोल-चाल की भाषा है, जो आज कई जगहों पर हमारे काम आती है फिर वो अपने देश में हो या विदेश में। अगर अंग्रेजी को हम सिर्फ एक अन्य भाषा के तौर पर स्वीकार करेंगे तो मेरे ख्याल से यह हमारे विकास के लिए भी अच्छा रहेगा और मानसिक संतुलन के लिए भी। ऐसा नहीं है कि इसमें कोई बुराई है। आखिर कई काम तो हमारे इससे होते ही हैं लेकिन इसे लेकर हिंदी को भी उपेक्षित नहीं किया जा सकता।

पूरे विश्वास के साथ बोली है हिंदी

किसी भी चीज का गौरव, चाहे वो भाषा हो या संस्कृति, तभी खत्म होता है जब हम उसे लेकर हीनभावना महसूस करते हैं। मेरी मातृभाषा भोजपुरी है, तो इसे बोलने में भी कभी मुझे शर्म महसूस नहीं हुई है तो फिर हिंदी को लेकर क्यों होगी? जिन लोगों को लगता है कि समाज में भाषा के आधार पर उन्हें परखा जाता है, उनकी सोच गलत है। मैं आमतौर पर हिंदी और भोजपुरी में बात करता हूं और मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ कि इस आधार पर किसी ने मुझे कमतर आंका हो। दरअसल, यह काफी हद तक आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। आप जिस तरह की पर्सनालिटी होते हैं और जिस तरह की ऊर्जा से लोगों से मिलते हैं, बात करते हैं, जिस तरह की आपकी मंशा रहती है, लोग आपसे वैसा ही व्यवहार करते हैं। मेरे साथ तो कभी भी ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं, जब किसी ने कहा हो कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती। यहां तक कि किसी अंग्रेजी जानने वाले ने भी मेरे साथ बुरा व्यवहार नहीं किया। अगर मैंने हिंदी बोली है तो पूरे विश्वास के साथ बोली है तो जाहिर सी बात है कि कभी ऐसा होना ही नहीं था।
भाषा नहीं होनी चाहिए स्टेटस
अब अगर हम उन शहरों, कस्बों और गावों की बात करें जहां लोग अपन मातृभाषा हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी को ज्यादा अहमियत देते हैं तो यह सच में कष्टदायी है। देखिए, यह बात उन लोगों पर ज्यादा फिट बैठती है जो अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजते हैं और फिर भाषा के आधार पर भेदभाव की बात करते हैं। एक तो आप उन्हें अंग्रेजी भी सिखाना चाहते हैं और दूसरी तरफ उनकी हिंदी पर काम भी नहीं करते। बच्चे के भविष्य के लिए उसे इंग्लिश मीडियम में भेज भी रहे हैं तो क्या आपने उसे हिंदी की अहमियत से अवगत कराया? क्या आपने उसे हिंदी के संस्कार दिए? अगर आप किसी भाषा को एक स्टेटस के साथ जोड़ेंगे तो दिक्कत आपके साथ है, भाषा के साथ यह दिक्कत बिल्कुल भी नहीं है। लिहाजा यह लोगों का कर्तव्य है कि हिंदी जैसी सुलझी हुई भाषा को वे गौरव के साथ अपनाएं। आपकी प्रतिष्ठा तो हिंदी न आने से कम होनी चाहिए।

हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए

आप मुझसे पूछें कि हिंदी के प्रसार-प्रचार के लिए मैं क्या कदम उठाऊंगा तो मेरे लिए इस विषय पर करने के लिए कुछ नहीं है। मेरे विचार से तो इसका गौरव कभी नीचे गया ही नहीं है। हिंदुस्तान की जनसंख्या का बड़ा तबका हिंदी बोलता है तो इसका बोलबाला होना लाजिमी है और बात यहां सिर्फ हिंदी की नहीं, मैं तो हर भाषा की बहुत इज्जत करता हूं चाहे वो तमिल हो, तेलुगु हो, बंगाली हो या मराठी हो। हम लोग आपस में अपने घर में, दोस्तों के साथ ज्यादातर भोजपुरी में ही बात करते हैं, इसीलिए न कि ये हमारी अपनी है। तो जो हमारा अपना है हमें उस पर गर्व होना ही चाहिए। अगर हम किसी और भाषा को अपना भी रहे हैं तो वो सिर्फ एक टूल की तरह होना चाहिए। उसके आधार पर आप किसी को जज नहीं कर सकते।
In conversation with Kratika Agarwal

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari