अक्षय कुमार एक और बायोपिक लेकर आ गए हैं। इस बार वे मिशन रानीगंज में कैप्सूल गिल यानी जसवंत सिंह गिल की भूमिका निभा रहे हैं। अक्षय कुमार की पिछली कुछ फ़िल्में बुरी तरह असफल रहीं इनमें से कई बायोपिक थीं। क्या मिशन रानीगंज अक्षय कुमार के डूबते करियर को रेस्क्यू कर पाएगी? इस सवाल का जवाब देना बेहद मुश्किल है।

कानपुर (इंटरनेट डेस्‍क)। अक्षय कुमार एक और बायोपिक लेकर आ गए हैं। इस बार वे मिशन रानीगंज में कैप्सूल गिल यानी जसवंत सिंह गिल की भूमिका निभा रहे हैं। अक्षय कुमार की पिछली कुछ फ़िल्में बुरी तरह असफल रहीं, इनमें से कई बायोपिक थीं। क्या मिशन रानीगंज अक्षय कुमार के डूबते करियर को रेस्क्यू कर पाएगी? इस सवाल का जवाब देना बेहद मुश्किल है।

क्या है कहानी?
फ़िल्म 1989 में घटी एक दुर्घटना और उसके बचाव की सच्ची कहानी है। यहाँ जसवंत सिंह गिल ने अपनी जान पर खेलकर, कोयला खदान में फँस गए मजदूरों की जान बचाई थी। इसके लिए गिल साहब को राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार मिला था। फ़िल्म में इसी कहानी को जस का तस रखा गया है।

अच्छी बातें
फ़िल्म की कहानी अपने आप में बेहद मजबूत है। विपुल रावल का स्क्रीनप्ले टेंशन वाले मौकों पर रोमांच पैदा करता है। इंटरवल के बाद फिल्म में रेस्क्यू मिशन तेजी पकड़ता है और दर्शकों को बांधे रखता है। फिल्म में बिहार-झारखंड से संबंध रखने वाले कलाकारों की लंबी कास्ट है। इनमें से ज्यादातर अपनी अति नाटकीयता के बावजूद कुछ सीन्स में हँसा जाते हैं। दिव्येंदु भट्टाचार्य ने बतौर विलन शानदार काम किया है। जब आपको किसी किरदार से नफरत होने लगे, तो समझिए कि एक्टर की तारीफ करनी चाहिए।

समस्या क्या है?
फिल्म शुरू होने से पहले अक्षय कुमार का विज्ञापन दिखाया गया कि हीरोगिरी फू-फू करने में नहीं है। इसके बाद फिल्म शुरू हो गई और आधे घंटे तक लगता रहा कि वही विज्ञापन चल रहा है। मतलब गाँव के सभी लोग बेवकूफ़ हैं और अक्षय कुमार आकर सबको नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ा देते हैं। ये बात इतनी फ़िल्मों में दोहराई जा चुकी है कि देखकर चिढ़ होती है। फिल्म में कुमुद मिश्रा और पवन मल्होत्रा जैसे जिन कलाकारों के अक्षय के साथ लंबे सीन हैं, उन्हें ढंग के डायलॉग तक नहीं दिए गए हैं कि कहीं वे हीरो पर भारी न पड़ जाएँ। वीएफ़एक्स इतने खराब हैं कि रील बनाने वाले लोग मोबाइल ऐप पर ऐसे वीएफ़एक्स बना लें। जितनी बार अक्षय का चेहरा क्लोज़अप में आता है, उनकी ढंग से न चिपकाई गई मूँछ देखकर लगता है कि ये अभी लटक कर गिर जाएगी। ऐसी बातों के बीच कितने लोग थिएटर में यह फिल्म देखने जाएंगे, कहना मुश्किल है।

क्यों देखें?
रियल लाइफ़ हीरो जसवंत सिंह गिल की बहादुरी के लिए।

क्यों न देखें?
ओटीटी या टीवी पर आने तक का इंतज़ार किया जा सकता है।

Rating: 3 stars

Review by: अनिमेष मुखर्जी

Posted By: Anjali Yadav