वो 6 हीरो जिन्होंने राम रहीम को पहुंचाया सलाखों के पीछे
1. गुमनाम चिठ्ठी :
इस पूरे मामले की शुरुआत एक गुमनाम खत से हुई थी। ये खत 13 मई 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा गया था। इस खत को किसने लिखा यह किसी को नहीं पता। बस इतना मालूम है कि सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में रहने वाली किसी महिला ने आपबीती सुनाते हुए यह खत लिखा था। खत में एक लड़की ने सिरसा डेरा सच्चा सौदा में गुरु राम रहीम के हाथों अपने यौन शोषण का जिक्र किया। इसमें साध्वी ने लिखा कि वह पंजाब की रहने वाली है और सिरसा के डेरा सच्चा सौदा में पांच साल से रह रही है। साध्वी ने इंसाफ की गुहार लगाई थी और यह भी कहा था कि मैं अपना नाम-पता लिखूंगी तो मुझे मार दिया जाएगा।
3. पीड़िताओं की हिम्मत :
गुमनाम खत और अखबार में राम रहीम के खिलाफ चल रही खबरों से पीड़िताओं का मनोबल बढ़ गया। उन्होंने अंबाला में पुलिस के सामने अपने साथ हुए रेप की आपबीती सुनाई। यह सब इतना आसान नहीं था। गवाहों पर लगातार दबाव बनाया जाता रहा। इनमें से एक महिला के ससुराल वालों को जब इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने पीड़ित महिला को घर से निकाल दिया। दोनों लड़कियों के परिवारों को हर वक्त डर लगा रहता। लड़की और उनके परिवार को धमकियां मिलने लगीं। बाद में उन्हें पुलिस सुरक्षा दी गई। पुलिस वाले उनके घर के बाहर तंबू डाल कर पूरे वक्त मौजूद रहते। एक रात उनका तंबू जला दिया गया और लड़की के परिवार को धमकी दी गई कि जैसे ये तंबू जलाया है, तुम्हें भी जला देंगे। पुलिस का टेंट जलाने के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद लड़की को परिवार समेत अंडरग्राउंड होना पड़ा था।
5. सीबीआई के डीएसपी सतीश डागर :
सीबीआई के जाबांज डीएसपी सतीश डागर न होते तो यह केस अपने मुकाम पर नहीं पहुंच पाता। सतीश डागर ने ही साध्वियों को सामने आने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया था। सतीश डागर पर भी बहुत दबाव पड़ा, मगर वे नहीं झुके। बड़े-बड़े आईपीएस ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं मगर डीएसपी सतीश डागर ने कमाल का साहस दिखाया। पहले सीबीआई कोर्ट अंबाला में हुआ करती थी। जब ये लोग वहां सुनवाई के लिए जाते थे तब वहां भी बाबा के समर्थकों की भीड़ आतंक पैदा कर देती थी। हालत यह हो गई कि जिस दिन सुनवाई होती थी और बाबा की पेशी होती थी उस दिन अंबाला पुलिस लाइन के भीतर एसपी के ऑफिस में अस्थायी कोर्ट बनाया जाता था। इसके बावजूद सतीश डागर ने हिम्मत नहीं हारी और कुकर्मी राम रहीम को सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लिया।