Google Doodle ने याद किया डाॅ हरबर्ट क्लेबर को, वो डाॅक्टर जिसने ढूंढ निकाला था नशे की लत छुड़वाने का फाॅर्मूला
कानपुर। अमेरिका के मशहूर साइकोलाॅजिस्ट और नशे की लत छुड़वाने का फाॅर्मूला खोजने वाले डाॅ हरबर्ट क्लेबर की उपलब्धियों पर गूगल ने आज का डूडल बनाया है। आज ही के दिन 23 साल पहले हरबर्ट को नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिसिन के लिए चुना गया था जिसको याद करते हुए गूगल ने इस उपलब्धि की 23वीं एनिवर्सरी पर दुनिया को हरबर्ट क्लेबर की फिर से याद दिलाई। पिछले साल दुनिया को अलविदा कह चुके डाॅ हरबर्ट काफी जानकार थे। क्लेबर ने पूरी जिंदगी यह पता लगाने की कोशिश की व्यक्ति को नशे की लत क्यों और कैसे लगती है और इससे छुटकारा कैसे पाया जाया, आखिर में उन्होंने इसका नायाब इलाज ढूंढ ही लिया था। येल यूनिवर्सिटी में बनाई ड्रग डिपेंडेंस यूनिट
19 जून, 1934 को पेंसिल्वेनिया के पिट्सबर्ग में जन्मे डॉ. क्लेबर डार्टमाउथ कॉलेज में पढ़े, जहाँ उन्होंने प्री-मेड का अध्ययन किया और मनोविज्ञान में अपने जुनून की खोज की। इसके बाद क्लेबर ने येल यूनिवर्सिटी में ड्रग डिपेंडेंस यूनिट की स्थापना की और उसके प्रमुख रहे। इस काॅलेज में वह साइकोलाॅजी के प्रोफेसर भी रहे थे।कैदियों का इलाज करते खोजा फाॅर्मूला
डाॅ क्लेबर अपने समय के अन्य डाॅक्टरों से बिल्कुल अलग राय रखते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को नशे की आदत लगना एक सामाजिक कारण नहीं बल्कि एक ऐसा रोग है जिसे रिसर्च, मेडिकेशन और थेरेपी से सही किया जा सकता है। डाॅ क्लेबर ने अपनी इस बात को तब और पुख्ता किया जब केंटकी जेल में बंद कैदियों का इलाज करने गए। यहां उन्होंने एक ऐसा तरीका निकाला, जिसे "सबूत-आधारित उपचार" कहा, जो कि नशे की लत के मार्ग को बदलने के लिए अनुसंधान और विज्ञान पर निर्भर था। उनके काम को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने मान्यता दी थी। उन्हें राष्ट्रीय औषधि नियंत्रण नीति के कार्यालय में डिमांड रिडक्शन के लिए उप निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।क्लेबर के नाम हैं कई उपलब्धियां
डॉ क्लेबर ने नशे के इलाज के उद्देश्य से विभिन्न केंद्रों की स्थापना की और इस विषय पर कई पत्र लिखे। नशीले पदार्थों के सेवन पर राष्ट्रीय केंद्र के सह-संस्थापक के अलावा, डॉ क्लेबर और उनकी पत्नी डॉ मैरियन डब्ल्यू फिशमैन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ फिजिशियन और सर्जन में मादक द्रव्यों के सेवन पर डिवीजन की स्थापना की - जो बाद में देश में सबसे बड़े मादक द्रव्यों के सेवन पर सफल अनुसंधान कार्यक्रम बना। आखिर में एक अक्टूबर 1996 को, डॉ क्लेबर को राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन का सदस्य चुना गया। जिसकी उपलब्धि को याद करते हुए गूगल ने आज डूडल बनाया।