जूडो के जनक कहे जाने वाले कानो जिगोरो की आज 161वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर कानो को याद किया है। आइए जानें कानो कौन थे और कैसे उन्होंने जूडो को बनाया फेमस।

कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Google डूडल ने गुरुवार को प्रोफेसर कानो जिगोरो को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्हें जापान में "फाॅदर ऑफ जूडो" के रूप में जाना जाता है। जूडो मार्शल आर्ट का ऐसा फाॅर्म है जो लोगों को न्याय, शिष्टाचार, सुरक्षा और शील के सिद्धांतों पर एक साथ लाता है। Google के अनुसार, डूडल को लॉस एंजिल्स स्थित कलाकार सिंथिया युआन चेंग ने प्रोफेसर जिगोरो की 161वीं जयंती मनाने के लिए चित्रित किया है। 28 अक्टूबर को प्रोफेसर कानो जिगोरो के जन्मदिन पर Google डूडल में कई स्लाइड हैं और यह जूडो के पूर्वज के जीवन और कार्य को फ्रेम की एक सीरीज में दिखा रहा है, जहां वह अपने छात्रों को मार्शल आर्ट में महारत हासिल करने के लिए विनम्रता और कड़ी मेहनत का मूल्य सिखाता है।

11 साल की उम्र में टोक्यो आए
कानो, जो 1860 में मिकेज (अब कोबे का हिस्सा) में पैदा हुए थे। वह 11 साल की उम्र में अपने पिता के साथ टोक्यो चले गए। वहां वह जुजुत्सु की मार्शल आर्ट का अध्ययन करने लगे। टोक्यो विश्वविद्यालय में एक छात्र के रूप में अपने समय के दौरान, उन्हें जुजुत्सु मास्टर और पूर्व समुराई फुकुदा हचिनोसुके से काफी कुछ सीखने को मिला। जुजुत्सु को पहले कई "खतरनाक तकनीकों" को शामिल करने के लिए जाना जाता था; इन्हें नए मार्शल आर्ट फॉर्म से हटाकर, कानो जूडो के रूप में एक सुरक्षित और सहकारी खेल बनाने में कामयाब रहे। यह कानो के सेरियोकू-ज़ेन्यो (ऊर्जा का अधिकतम कुशल उपयोग) और जिता-क्योई (स्वयं और दूसरों की पारस्परिक समृद्धि) के व्यक्तिगत दर्शन पर आधारित था।

ऐसा रहा है प्रभाव
बाद में, 1882 में, कानो ने अपना डोजो (एक मार्शल आर्ट जिम), टोक्यो में कोडोकन जूडो संस्थान खोला, जहां वह वर्षों तक जूडो का विकास करते रहे। उन्होंने 1893 में महिलाओं का खेल में स्वागत किया। 1909 में कानो अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के पहले एशियाई सदस्य बने और 1960 में जूडो को आधिकारिक तौर पर एक ओलंपिक खेल के रूप में शामिल किया गया।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari