गणेश वही शक्ति हैं जिस कारण इस ब्रह्मांड का सृजन हुआ जिससे सब कुछ प्रकट हुआ और जिसमें यह सबकुछ विलीन हो जाना है।

गणेश दिव्यता की निराकार शक्ति हैं, जिनको भक्तों के लाभ के लिए एक शानदार रूप में प्रकट किया गया है। गण यानि समूह। ब्रह्मांड परमाणुओं और विभिन्न ऊर्जाओं का एक समूह है। इन ऊर्जा समूहों के ऊपर यदि कोई सर्वोपरि नियम न बनकर रहे तो यह ब्रह्मांड अस्त-व्यस्त हो जाएगा। परमाणुओं और ऊर्जा के इन सभी समूहों के अधिपति गणेश हैं। वह परमतत्व चेतना हैं, जो सब में व्याप्त है और इस ब्रह्मांड में व्यवस्था लाती है। आदि शंकर ने गणेश के सारतत्व का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। हालांकि गणेश भगवान को हाथी के सिर वाले रूप में पूजा जाता है, उनका यह स्वरूप हमें निराकार परमब्रह्मरूपा की ओर ले जाने के लिए है।

वे 'अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं’ हैं। अर्थात् वे अजन्मे, गुणातीत व निराकार हैं और उस परचेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है। गणेश वही शक्ति हैं, जिस कारण इस ब्रह्मांड का सृजन हुआ, जिससे सब कुछ प्रकट हुआ और जिसमें यह सबकुछ विलीन हो जाना है। हम सब इस कहानी से परिचित हैं कि गणेश जी कैसे हाथी के सिर वाले भगवान बने। पर क्या यह सुनने में अजीब है? पार्वती जी के शरीर पर मैल क्यों आया? सबकुछ जानने वाले शिव अपने ही बेटे को क्यों नहीं पहचान सके? और गणेश का सिर हाथी का क्यों है? इसमें गहरा रहस्य छिपा हुआ है।

गणेश जी का हाथी का सिर क्यों?


पार्वती उत्सव की ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनके मैला होने का अर्थ है कि उत्सव के दौरान हम आसानी से राजसिक हो सकते हैं। मैल अज्ञानता का प्रतीक है और शिव भोलेभाव, परमशांति और ज्ञान के प्रतीक हैं। गणेश ने शिव के पथ को रोका, इसका अर्थ है कि अज्ञानता, ज्ञान को पहचान नहीं पाई। फिर ज्ञान को अज्ञानता मिटानी पड़ी। और हाथी का सिर क्यों? ज्ञान शक्ति व कर्म शक्ति दोनों का प्रतिनिधित्व हाथी करता है। हाथी के गुण सिद्धांतत: बुद्धि और अप्रयत्नशीलता हैं। हाथी का बड़ा सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। वह न तो किसी अवरोध से बचने के लिए घूमकर निकलता है और न ही कोई बाधा उसे रोक पाती है। वह बाधाओं को हटाते हुए सीधे चलता है। तो जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो हमारे भीतर भी यही गुण आ जाते हैं।

परमज्ञान के प्रतिनिधि


गणेश का बड़ा पेट उदारता और पूर्ण स्वीकृति का प्रतीक है। गणेश के अभय मुद्रा में उठे हुए हाथ, संरक्षण का प्रतीक हैं। गणेश जी का एक ही दंत है जो एकाग्रचित होने का प्रतीक है। उनकी सवारी चूहा उस मंत्र की भांति है जो अज्ञान की परतों को भेद देता है, और उस परमज्ञान की ओर ले जाता है जिसका प्रतिनिधित्व गणेश करते हैं। इन गहरे प्रतीकों को हमें भी मन में रखना चाहिए।

श्री श्री रविशंकर जी

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Posted By: Kartikeya Tiwari