‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से विख्यात धावक मिल्खा सिंह को रोम ओलंपिक में पदक नहीं जीतने का अब भी मलाल है. उनका कहना है कि वह ताउम्र इसे नहीं भूल पाएंगे लेकिन उस दिन भाग्य उनके साथ नहीं था. उन्होंने यह बात अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ में कही है.


शीघ्र प्रकाशित होने वाली इस किताब में मिल्खा ने अपनी जिंदगी के कई अनछुए प्रसंग साझा किए हैं. अपनी आत्मकथा में पदक नहीं जीतने का दर्द बयां करते हुए मिल्खा सिंह ने लिखा है, ‘1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में मैं पदक जीत सकता था, लेकिन उस दिन भाग्य मेरे साथ नहीं था.’ कॉमनवेल्थ में भारत को पहली बार स्वर्ण पदक दिलाने वाले मिल्खा सिंह का जन्म 1932 में अविभाजित भारत में हुआ था. 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन ने उनके बचपन की सारी खुशियां छीन लीं. उन्होंने अपने मां-बाप को खो दिया और शरणार्थी बनकर भारत आए.


बचपन में सब कुछ खोने के बाद उन्होंने जीवन में कुछ कर गुजरने की ठानी और दौड़ पर ध्यान दिया. वह लिखते हैं, ‘दौड़ का मैदान मेरे लिए एक खुली किताब की तरह था, जिस पर मैं अपने जीवन के अर्थ और उद्देश्य को पढ़ सकता था’. मिल्खा सिंह ने मेलबर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलने की खुशी को भी साझा किया है, लेकिन इसमें उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा.

जापान गेम्स के बाद आयोजित एक समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ मिल्खा सिंह ने अपनी मुलाकात का भी आटोबायोग्राफी में जिक्र किया है. उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने मुझसे कहा, ‘आपने देश का गौरव बढ़ाया है. यदि इसी तरह मेहनत करते रहे तो विश्व के शीर्ष धावकों में से एक होंगे’. किताब के अंत में मिल्खा सिंह ने लिखा है कि मेरी यह आत्मकथा युवाओं को खेल के प्रति पे्ररित करेगी. किताब में प्रस्तावना उनके गोल्फर बेटे जीव मिल्खा सिंह ने लिखी है, जबकि इसकी सहलेखिका उनकी बेटी सोनिया सानवाका हैं. इस दिग्गज धावक के जीवन पर निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा बनाई गई फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ 12 जुलाई को रिलीज हो रही है, जिसमें फरहान अख्तर मिल्खा की भूमिका में हैं. इसमें मेहरा ने लिखा है कि मिल्खा सिंह की जिंदगी में मेरा प्रवेश इस फिल्म के माध्यम से हुआ. इससे  मुझे उनके जीवन को बेहद करीब से जानने का मौका मिला.

Posted By: Satyendra Kumar Singh