अपने प्रशंसकों के बीच 'काका' नाम से मशहूर राजेश खन्ना की 18 जुलाई को पहली बरसी है. इस मौक़े पर उनके कुछ क़रीबी दोस्त और सहअभिनेता बीबीसी के साथ बांट रहे हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें.अनीता आडवाणी क़रीबी दोस्त उन्हीं की ज़ुबानी


"मैं उनसे पहली बार मिली जब मैं बहुत छोटी थी. मेरे एक परिचित मुझे उनकी शूटिंग दिखाने ले गए.वो सेट पर एक कुर्सी पर तौलिया लपेटे बैठे थे. मैं उन्हें देखते ही रह गई. तब से लेकर आज तक मुझे उनसे अच्छा कोई और नहीं लगा.फिर मैं दोबारा उनसे महबूब स्टूडियो में मिली.तब मेरी उम्र कोई 13 साल रही होगी. उसके बाद मैं अगले आठ-दस महीने उनसे लगातार मिलती रही.वो मुझे देखकर काफ़ी ख़ुश हो जाते. मुझे समझ में ही नहीं आता कि इतना बड़ा सुपरस्टार मुझे क्यों इतना पसंद करता है.फिर मैं अपने गृहनगर जयपुर चली गई और हमारा संपर्क ख़त्म हो गया."दोबारा मुलाक़ात"उन्हें हर काम सलीक़े वाला पसंद था. कोई बात उनके मन की ना हो या कोई सामान अपनी जगह पर ना रखा हो तो वो बेहद ग़ुस्सा हो जाते थे.


उनका स्टाफ़ उनसे थर-थर कांपता था. कई बार ग़ुस्से में वो खाने की प्लेट भी फेंक देते.लेकिन शाम होते ही वो बिलकुल बच्चे बन जाते. ज़िद करने लगते कि मुझे आइसक्रीम खानी है. मुझे छोले-भटूरे खिलाओ. वग़ैरह-वग़ैरह.

काफ़ी रोमांटिक तबियत के थे. कई बार अपने गाने मेरे सपनों की रानी पर नाचने लगते. काफ़ी धार्मिक भी थे. घर में पूजा-पाठ भी करते थे."आख़िरी समय"शराब ने उन्हें बहुत नुक़सान पहुंचाया. आख़िरी दिनों में बेहद कमज़ोर हो गए थे. बार-बार गिर पड़ते. जिससे उन्हें कई फ्रैक्चर हो गए थे.बेहद ग़मगीन रहने लगे थे. सोते नहीं थे. कहते थे कोई दूसरे ग्रह से आएगा और मुझे ले जाएगा.उन्हें मौत का डर सताने लगा था. बार-बार कहते मैं 70 साल से ज़्यादा नहीं जिऊंगा. वो उसके भी पहले चले गए."जूनियर महमूद, सह-अभिनेता (उन्हीं की ज़ुबानी)"मैंने उनके साथ दो-तीन नहीं बल्कि 25-26 फ़िल्में कीं. हम लोग दोस्तों की तरह रहते. हंसी मज़ाक़ करते. मैं उनके घर खाना खाने जाता. उन्हें दाल बनाने का बड़ा शौक़ था.आम धारणा है कि वो बड़े घमंडी थे. लेकिन मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया. कई बार अपने सहयोगियों की मदद भी कर दिया करते. लेकिन किसी को पता नहीं चलने देते.अपने ज़माने में बेहद मशहूर थे. हमेशा लड़कियों का हुजूम उनके इर्द गिर्द रहता था."सबसे दूर हो गए

उनके साथ दिक्क़त ये हो गई कि वो नाकामयाबी से उबर नहीं पाए. बदलते वक़्त के साथ अपने आपको ढाल नहीं पाए. जैसा अमिताभ बच्चन ने बड़ी कामयाबी से किया, वैसा काका नहीं कर पाए.अपने अंतिम दिनों में उन्होंने अपने आपको सबसे अलग कर लिया था.एक बार मैं उनसे पार्टी में मिला. मैंने पुराने साथी होने के नाते उन्हें गले लगाया. लेकिन उन्होंने बिलकुल ठंडी प्रतिक्रिया दी.मुझे ये देखकर बड़ा अफ़सोस हुआ. दुख इस बात का नहीं था कि उन्होंने मुझे उपेक्षित कर दिया. दुख इस बात का था कि वो अपने आपसे कितने दुखी थे.

Posted By: Satyendra Kumar Singh