सफ़ेद बाघ कैसे हासिल करता है अपना रंग? इस राज़ से पर्दा उठाया है चीनी वैज्ञानिकों ने. चीनी वैज्ञानिकों ने उस जीन का पता लगा लिया है जो बाघ में सफ़ेद रंग के लिए ज़िम्मेदार है.


वैज्ञानिकों के मुताबिक यह जीन न केवल बाघ बल्कि इंसानों के रंग में भी बदलाव के लिए ज़िम्मेदार है. सफ़ेद बाघ नारंगी रंग वाले बाघ का ही विलक्षण प्रकार होते हैं. हालांकि आजकल सफ़ेद बाघ केवल कैद में ही पाए जाते हैं जहां इनका संकरण कराया जाता है ताकि इनकी चमड़ी का ख़ास रंग बना रहे.पीकिंग विश्वविद्यालय के शुन-जी लू और उनके साथियों का ये शोध करन्ट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है. इस शोध में बताया गया है कि कैसे वैज्ञानिकों ने किमलॉंग सफ़ारी पार्क में कैद बाघ परिवार की जैव संरचना का अध्ययन किया. किमलॉंग सफ़ारी पार्क गुआंगजो प्रांत में है.जीन में बदलावशोध एसएलसी45ए2 नाम के रंग जीन पर केन्द्रित था. यह जीन इंसान के अलावा घोड़े, मुर्गे और मछलियों में भी हल्के रंग के लिए ज़िम्मेदार है. लेकिन जब सफ़ेद बाघ के एसएलसी45ए2 का अध्ययन किया गया तो वो थोड़ा परिवर्तित दिखा.


हालांकि इसका असर बाघों के अंदर काले रंग के बनने पर नहीं होता है और सफ़ेद बाघ के शरीर में सामान्य बाघ की तरह ही काली पट्टियां बन जाती हैं. चिड़ियाघर में पाए जाने वाले बहुत से सफ़ेद बाघों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पडता है. इनमें से कई को दृष्टिदोष जैसी समस्याएं हो जाती हैं.

हालांकि लू और उनके सहयोगी इन कमियों के लिए इंसान को ज़िम्मेदार ठहराते हैं जो सफ़ेद बाघों को पाने का लिए उन्हें उनके नज़दीकी परिवार में ही बच्चे पैदा करने का लिए मजबूर करते हैं. सफ़ेद रंग को बाघ के अंदर आ रही सामान्य कमजोरियों का हिस्सा नहीं माना जा सकता.इस तथ्य को स्थापित करने का मतलब है कि संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत ये मानना कि वो जंगल में रह सकते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है"आखिरी बार स्वतंत्र रूप से बिचरने वाले सफ़ेद बाघ को 1958 में भारत में मारा गया था. इससे पहले तक भारत में बाघ को खुले में देखने की परंपरा थी."शोधकर्ताओं के मुताबिक "सफ़ेद बाघों की समाप्ति की वजह वही है जो दूसरे बाघों की है जैसै अनियंत्रित शिकार, शिकार की अनुपलब्धता और आवास का विखंडन. हालांकि तथ्य ये भी है कि कई सफ़ेद बाघ युवावस्था में ही मारे गए या पकड़े गए. इससे ये साबित होता है कि वो जंगल में जीवित रह सकते हैं.”

Posted By: Garima Shukla