अर्जेंटीना और उसके तमाम प्रशंसक चाहते थे कि विश्व कप फुटबॉल के फाइनल में 1986 का इतिहास दोहराया जाए. इतिहास दोहराया गया पर 1986 का नहीं 1990 का. स्कोरलाइन वही 1990 वाली 1-0. और एक बार फिर ये साबित हो गया कि विश्व कप चैम्पियन का फैसला रूमानियत से नहीं खेल से होता है. जर्मनी ने पहली बार लैटिन अमेरिकी धरती पर यूरोप का परचम लहरा दिया. 24 साल तक हर विश्व कप में अच्छा खेल कर खिताब से दूर रहने वाली जर्मनी की टीम ने आखिरकार विश्व कप हासिल कर ही लिया. पढि़ए अर्जेंटीना की हार और जर्मनी की जीत को लेकर सीनियर न्‍यूज एडिटर उमंग मिश्र का विस्‍तृत विश्‍लेषण...


मेसी बनाम क्लोसाएक ओर मेसी थे जिनके नाम विश्व कप शुरू होने से पहले सिर्फ एक विश्व कप का गोल था फिर भी वो दुनिया की आंखों के तारे थे और दूसरी ओर जर्मनी के मिरोस्लाव क्लोसा थे तो इस विश्व कप से पहले तीन विश्व कप में कुल 14 गोल मार चुके थे लेकिन फिर भी चर्चा से बाहर थे. सपना पूरा हुआ पर सुपर स्टार मेसी का नहीं पिछले तीन विश्व कप के अनसंग रह गए हीरो क्लोसा का जिनके करिअर में विश्व कप की सफलता जुड़ गई.डिजर्विंग टीम ही जीतती है विश्व कप
जब 90 मिनट तक दोनों टीमें गोल नहीं कर सकीं तो एक्ट्रा टाइम शुरू हुआ. पहले 15 मिनट में दोनों टीमों ने गोल करने के लिए जान लगा दी पर नतीजा वही सिफर. एक्ट्रा टाइम के दूसरे हाफ में जब खेल शुरू हुआ तो लगा अर्जेंटीना ने मान लिया है कि मैच का फैसला पेनाल्टी शूट आउट से होगा. अर्जेंटीना थोड़ा सा डिफेंसिव हुई और यहीं पर खेल हो गया. एक्ट्रा टाइम खत्म होने के सात मिनट पहले क्लोसा की जगह आए रिप्लेसमेंट गोट्जे ने वो कर दिखाया जो उस मैच में बड़े-बड़े नहीं कर पाए थे. गोट्जे ने गेंद को सीने से कंट्रोल किया और बेहतरीन वॉली करके गोल जड़ दिया. अर्जेंटीना और पूरी दुनिया में उसके प्रशंसक स्तब्ध रह गए. सबको पता था कि बाकी बचे 6 मिनट में गोल उतार पाना मुश्किल की नहीं नामुमकिन है. 22 साल के युवा ने 24 साल का सूखा खत्म कर दिया था. इकलौते खिलाड़ी मेसी के बल पर खेलने की सजा अर्जेंटीना को मिलने जा रही थी.गोल्डन बॉल पाकर भी निराशलियोनल मैसी अकेले अपने दम पर टीम को फाइनल तक ले गए वैसे ही जैसे 1990 में माराडोना ने किया था. लेकिन वो 1986 वाले माराडोना नहीं बन सके जिसने विश्व कप जिताया था.  लेकिन मेसी के पास 1986 के वल्डानो और बुरुचागा नहीं थे. मेसी का आकलन करते समय ये बाद हमेशा याद रखनी होगी. मेसी को मिले अगुएरो और हिगुएन जो निराश करते रहे. इकलौता सहारा डी मारिया भी चोटिल होकर फाइनल से बाहर हो गया. लियोनल मेसी अकेले जो कर सकते थे वो किया. अब किस्मत भी रोज रोज माराडोना कहां बनने देती है किसी को.mail us:umang.mishra@inext.co.in

Posted By: Satyendra Kumar Singh