धरती पर गिरी 'अंतरिक्ष की फ़रारी'
शुरुआती अनुमानों के मुताबिक़ इससे निकला हुआ मलबा पूर्वी एशिया से लेकर पश्चिमी प्रशांत और अंटार्कटिका में कहीं गिरा होगा.आर्कषक दिखने की वजह से जीओसीई (ग्रेविटी फील्ड एंड स्टेडी स्टेट ओशन सर्कुलेशन एक्सप्लोरर) को 'फ़रारी ऑफ़ स्पेस' नाम दिया गया था.पिछले 25 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के किसी अंतरिक्ष अभियान ने पृथ्वी के वातावरण में अनियंत्रित होकर दोबारा प्रवेश किया है.जीओसीई को साल 2009 में प्रक्षेपित किया गया था. गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन करने के लिए भेजे गए इस उपग्रह का ईंधन समाप्त हो गया था जिसके बाद इसे नष्ट करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रह गया था.निचली कक्षा
ऐसे उपग्रह को काम करने के लिए इलेक्ट्रिक इंजन की ज़रूरत होती है लेकिन पिछले महीने इसका ईंधन खत्म हो गया था.जीओसीई को आख़िरी बार रविवार को अंतरराष्ट्रीय समयानुसार 22 बजकर 42 मिनट पर देखा गया. उस समय वह अंटार्कटिका के ऊपर 121 किमी की ऊंचाई पर था.
इस उपग्रह में इतना ईंधन था जो उसे न्यूजीलैंड के पूर्व में स्थित दक्षिणी सागर में ले गया. इस विशाल क्षेत्र में कोई इंसानी आबाादी नहीं है.अंतरिक्ष में मौजूद कूड़े पर अध्ययन करने वाली संस्था इंटर एजेंसी स्पेस डेब्री कॉऑर्डिनेशन कमेटी ने 2013 में अपने स्पेशल स्टडी प्रोजेक्ट के लिए जीओसीई को चुना था.वायुमंडल में प्रवेशइसका मतलब है कि जीओसीई के पृथ्वी पर लौटने की घटना के लिए दुनिया भर में बड़ी संख्या में निगरानी केंद्रों को सक्रिय कर दिया गया था.आने वाले दिनों में इस बात की विस्तृत जानकारी मिल सकती है कि जीओसीई का मलबा पृथ्वी पर वास्तव में कहां गिरा था.आंकड़ों से पता चलता है कि अंतरिक्ष में मौजूद अभियानों के मलबे का कम से कम एक टुकड़ा हर रोज़ पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है. इसी तरह औसतन हर हफ़्ते कोई पुराना उपग्रह या रॉकेट पूरा का पूरा धरती पर लौट रहा है.इससे पहले पृथ्वी के वातावरण में अनियंत्रित प्रवेश करने वाला ईएसए का आखिरी मिशन इसी-2 था जो साल 1987 में लौटा था. हालांकि एजेंसी नियमित रूप से उपग्रहों को नियंत्रण के साथ पृथ्वी पर वापस लाती रहती है.