अमरीका की मशहूर सिलिकॉन वैली कारोबार के क्षेत्र में कुछ कर गुज़रने का हौसला रखने वाले हुनरमंद प्रवासी भारतीयों की मंज़िल रही है.


यहां प्रतिभा के बल पर कामयाबी पाने वाले भारतीय मूल के लोगों की चर्चा भी होती रही है.लेकिन पहले सिलिकॉन वैली आने वाले जो भारतीय बड़ी नौकरी और मोटी पगार के पीछे भागते थे वे अब जोखिम उठाने में भी आगे रहने लगे हैं.नाकामी को सफलता का पहला चरण मानने वालों में अपूर्व मेहता, प्रशांत शाह, विवेक वाधवा जैसे भारतीय शामिल हैं जिन्होंने सिलिकॉन वैली में न केवल अपना जादू चलाया बल्कि भारतीय मूल के लोगों की मदद भी कर रहे हैं.पढ़े लेख विस्तार सेबिज़नेस की दुनिया की सच्चाई है कि नई कंपनियां अक्सर नाकामयाब होती हैं.सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले भारतीय मूल के अपूर्व मेहता की कोशिशें भी एक के बाद एक धराशाई होती चली गईं.


उनकी कोशिशों में से एक वकीलों के लिए एक ख़ास सोशल नेटवर्क शुरू करना भी शामिल था, उसके लिए कुछ फ़ंडिंग भी मिली लेकिन प्रोजेक्ट औंधे मुंह जा गिरा.अपूर्व का कहना है कि इसकी मूल वजह थी कि उन्हें वकीलों के बारे में कुछ भी नहीं पता था, ये भी नहीं पता था कि वकीलों की टेक्नॉलॉजी में ख़ास रुचि नहीं थी.ऐसे में इंस्टाकार्ट एक निजी ज़रूरत बन कर आई.

अपूर्व मेहता कहते हैं, “मुझे शॉपिंग करना बहुत बुरा लगता है. और ये आइडिया एक तरह से मेरी निजी परेशानियों के हल की तरह उभरा और शायद इसलिए कामयाब हुआ.”दो अरब डॉलर की इंस्टाकार्टबीस-पच्चीस साल पहले सिलिकॉन वैली आए ज़्यादातर भारतीय पक्की नौकरी और महीने के आख़िर में मोटी तनख़्वाह के पीछे भागते थे.सिलिकॉन वैली ने उस सोच में बड़ा बदलाव किया है और ऐसे लोगों की ख़ासी तादाद है जो न तो नाकामी से घबराते हैं और न ही ख़तरा लेने से डरते हैं.आज यहां की कामयाब कंपनियों में भारतीय मूल के लोगों की एक साख बन चुकी है. बीस प्रतिशत से ज़्यादा स्टार्ट-अप कंपनियां भारतीय मूल के लोग चला रहे हैं.टेक्नॉलॉजी और स्टार्टअप्स कंपनियों के बारे में ख़ासी जानकारी रखनेवाले स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में काम करने वाले विवेक वाधवा का कहना है कुछ हद तक ये कामयाबी इसलिए भी हासिल हुई है क्योंकि यहां भारतीयों का एक मज़बूत नेटवर्क बन गया है.ताजमहल जैसे घर'टाई' ने कुछ ही महीने पहले एक बिलियन डॉलर बेबीज़ के नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है.

इस कार्यक्रम के तहत कोशिश इस बात की हो रही है कि भारत की कामयाब कंपनियों को अमरीका में पांव जमाने में मदद की जाए.कई जानकारों का मानना है कि इससे बड़ा बदलाव आ सकता है क्योंकि ये कंपनियां ऐसे ईजाद कर सकती हैं जो सिर्फ़ अमीरों के नहीं, करोड़ों लोगों के काम आएंगी.विवेक वाधवा कहते हैं कि भारत के नौजवानों और आईटी सेक्टर में काम करने वाले लोगों में भी अपना कुछ शुरू करने की सोच बढ़ रही है.वाधवा का कहना है, “आने वाले सालों में आप भारत में सिलिकॉन वैली का जादू देखेंगे. साल 2015 भारत के लिए तकनीकी क्रांति का साल होगा.”

Posted By: Satyendra Kumar Singh