हाल ही में सामने आये एक अध्‍ययन के बारे में जान कर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले लोगों का धक्‍का लग सकता है। क्‍योंकि जहां आमतौर पर माना जाता है कि फेसबुक और व्‍हाट्सएप्‍प जैसे माध्‍यमों पर सक्रिय रहना मॉर्डन होने की निशानी है वहीं ये अध्‍ययन कहता है कि फेसबुक हमें असमाजिक और अधिक संकीर्ण मानसिकता वाला बना सकता है। आखिर इसके पीछे क्‍या तर्क आइये जानते हें।

एक ही जैसी सोच वालों के बीच रहना
अमेरिका में नेशनल अकेडमी ऑफ सांइसेज की प्रोसीडिंग्स में बताया गया है बोस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, क्योंकि हम इस सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर उसी तरह की खबरें और विचार ढूंढते हैं जो हमारी अपनी राय से मेल खाते हों, इसके चलते हमारी सोच एक निश्चित दायरे में ही कैद हो कर रह जाती है।  
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सामाजिक रूप से कट जाते हैं
ये अध्ययन ये भी कहता है कि सोशल मीडिया हमें समाजिक रूप से अलग-थलग कर देता है, और पक्षपात पैदा करता है। ये माध्यम हमारी निश्चित सोच को पुष्ट करने में मददगार होता और कभी कभी गलत सूचना भी दे देता है। अमेरिका में बोस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन को साजिश की आशंका और वैज्ञानिक सूचना के दो बिंदुओं पर केंद्रित किया है।
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अस्वीकृत बातों की उपेक्षा
शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार फेसबुक का इस्तेमाल करने वाले लोग कुछ निश्चित बातों से संबंधित सूचना का ही चयन करते हैं और उसे शेयर करते हैं। बाकी बातों की उपेक्षा कर देते हैं। एक शोधार्थी अलेसैंद्रो बेसी ने ये भी बताया कि फेसबुक पर मौजूद लोगों में एक यह चलन देखने को मिलता है कि वे ऐसी सूचना को सर्च करने, उसकी व्याख्या करने और याद करने का प्रयास करते हैं जो उनकी पहले से बनी हुई धारणा के अनुकूल होती है। इस अध्ययन के नतीजों को ‘पीएनएएस’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
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Posted By: Molly Seth