महाराष्ट्र के गडचिरोली इलाका नक्सल प्रभावित रहा है. नक्सलियों का प्रभाव स्थानीय लड़के-लड़कियों पर भी पड़ा. समाज के पिछले और दबे कुचले इलाके के अपने लोगों के उत्थान के लिए इन युवाओं ने कुछ साल हथियार उठा लिए थे.


अलग अलग इलाकों में ऐसे युवाओं का समूह दलम कहलाता था. गडचिरोली के दुर्गम जंगलों में पैदल घूमते हुए, पुलिस का मुक़ाबला करते हुए, उनकी गोलियों से बचते हुए इन युवाओं की ज़िंदगी आगे बढ़ रही थी.आपस में थोड़ा समय व्यतीत करने के दौरान दलम के अंदर पुरुष तथा स्त्री साथियों से धीरे धीरे जान पहचान हुई और कुछ को आपस में प्यार भी हो गया. जिन्हें प्यार हुआ उन्होंने ज़िंदगी भर साथ निभाने की कसमें खाईं और शादी के बंधन तक में बंध गए.लेकिन मनचाहा जीवन साथी मिलाने और शादी करने का आनंद ज़्यादा दिन तक टिक न सका. नक्सल मुहिम के कायदों के मुताबिक, शादीशुदा पुरुषों पर नसबंदी का ऑपरेशन कर दिया गया ताकि वह बच्चों को जन्म न दे सके और न ही परिवार बढ़ा सके.बेहतर ज़िंदगी का भरोसा


कुछ महीने इस हालत में गुज़रने के बाद एक बेहतर ज़िंदगी के लिए इन लोगों ने पुलिस को सरेंडर करने का फ़ैसला लिया. इन लोगों के पुनर्वसन के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 29 अगस्त 2005 को एक आदेश जारी कर गडचिरोली में पुनर्वसन कक्ष शुरू किया जिसे सितम्बर 2013 में सरेंडर सेल में तब्दील किया गया.इस सेल के माध्यम से अब तक कई नक्सलियों का पुनर्वसन किया जा चुका है.

गडचिरोली के पुलिस अधीक्षक सुवेज़ हक़ ने बताया, "जिला प्रशासन द्वारा दिए गए जमीन पर हम इनके लिए घरकुल तथा इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत मकान बनवा रहे हैं. उनके लिए रोजगार मुहैया कराने के लिए हमने उन्हें सिलाई मशीनें भी दी हैं, इसके अलावा उनके नौकरी के लिए भी कोशिशें की जा रही हैं."

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari