भूकंप की भविष्यवाणी का क्या है सच?
विज्ञान की तमाम आधुनिकताओं के बाद भी ये संभव नहीं है. लेकिन भूकंप आने के बाद उसके असर के दायरे में, ये बताना संभव है कि भकूंप के झटके कहाँ, कुछ सेकेंड बाद आ रहे हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि सोशल मीडिया में भूकंप आने के बारे में लगाए जा रहे कयास और टिप्पणियां बेबुनियाद और वैज्ञानिक तौर पर अतार्किक हैं.बीबीसी हिंदी को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के दो विशेषज्ञों से बात की है.एक्सपर्ट्स ने बीबीसी हिंदी को क्या बतायाराष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रोफ़ेसर चंदन घोष बताते हैं, "भूकंप के केंद्र में तो नहीं, लेकिन उसके दायरे में आने वाले इलाकों में कुछ सेकेंड पहले वैज्ञानिक तौर पर ये बताया जा सकता है कि वहां भूकंप आने वाला है."हालांकि कुछ सेकेंड का समय बेहद कम होता है. यही वजह है कि इसको लेकर पहले कोई भविष्यवाणी नहीं की जाती है.
चंदन घोष कहते हैं, "भारत परिपेक्ष्य में तो ये संभव भी नहीं है. लेकिन जापान में कुछ सेकेंड पहले भूकंप का पता लग जाता है. लेकिन वहां भी सार्वजनिक तौर पर इसकी मुनादी नहीं की जाती है. लेकिन इसकी मदद से बुलेट ट्रेन और परमाणु संयंत्रों को ऑटोमेटिक ढंग से रोक दिया जाता है."
प्रोफ़ेसर चंदन घोष बताते हैं, "जब कोई भूकंप आता है तो दो तरह के वेव निकलते हैं, एक को प्राइमरी वेव कहते हैं और दूसरे को सेकेंडरी या सीयर्स वेव. प्राइमरी वेव औसतन 6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलती है जबकि सेकेंडरी वेव औसतन 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से. इस अंतर के चलते प्रत्येक 100 किलोमीटर में 8 सेकेंड का अंतर हो जाता है. यानी भूकंप केंद्र से 100 किलोमीटर दूरी पर 8 सेकेंड पहले पता चल सकता है कि भूकंप आने वाला है."
इस लिहाज़ से देखें तो मौजूदा वैज्ञानिक क्षमताओं को देखते हुए भूकंप के बारे में भविष्यवाणी करना नामुमकिन है.लेकिन सेंकेड के अंतर से जान माल के नुकसान को कुछ कम किया जा सकता है. चंदन घोष के मुताबिक जापान और ताइवान जैसे देशों में इस तकनीक के इस्तेमाल से नुकसान काफी कम हो सकता है.हालाँकि सोशल मीडिया में भकूंप के आने को लेकर कयासबाजी की जा रही है जो निर्रथक है.राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर आनंद कुमार कहते हैं, "चूहे और सांप तो पृथ्वी के अंदर ही रहते हैं तो उन्हें निश्चित तौर पर पहले पता चल सकता है. कुत्तों में भी भांपने की क्षमता होती है. ये मानना काफी हद तक सच हो सकता है, लेकिन इस दिशा में वैज्ञानिकों ने अब तक ज़्यादा शोध नहीं किया है."