भारत में मेट्रो को पटरियों में दौड़ाने वाले ई.श्रीधरन आज 85 साल के हो गए हैं। एक समय इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस IES ऑफिसर बनकर उन्‍होंने मेट्रो रेल जैसे कई बड़े-बड़े प्रोजेक्‍ट बनाकर पब्‍िलक ट्रांसपोर्ट को आसान बना दिया था। तो आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें...


6 महीने का काम 46 दिन में1954 में IES ऑफिसर बनकर भारत सरकार की सेवा में लगे ई.श्रीधरन 1964 में चर्चा में आए थे। जब एक साइक्लोन ने रामेश्वरम से तमिलनाडु को जोड़ने वाले पंबन ब्रिज को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इस ब्रिज पर रेल का आवागमन होता था। लेकिन पुल टूटने के कारण काफी परेशानी होने लगी। उस दौरान श्रीधरन को इसकी रिपेयरिंग का काम सौंपा गया, और रेलवे ने इसके लिए 6 महीने का समय दिया। वैसे नॉर्मली यह काम ज्यादा से ज्यादा 3 महीने का था, लेकिन श्रीधरन ने इसका चार्ज संभालते हुए पूरा काम 46 दिनों में ही खत्म कर दिया। श्रीधरन के इस काम को देखकर रेलवे मिनिस्टर ने उन्हें सम्मानित किया था। और बन गए 'मेट्रो मैन'
1970 में डिप्टी चीफ इंजीनियर रहते हुए श्रीधरन को कलकत्ता मेट्रो की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह भारत की पहली मेट्रो रेल सेवा थी। श्रीधरन ने काफी मेहनत और समझदारी से इस प्रोजेक्ट को पूरा किया। जिसके चलते चारों ओर उनकी खूब तारीफ हुई। हालांकि साल 2000 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के मैनेजिंग डायरेक्टर रहते हुए श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो की जिम्मेदारी संभाली। इसके चलते उन्होंने मिनिस्ट्री से मेट्रो कोचेस के लिए स्टैंडर्ड गेज बनाने की बात कही, जो कि ग्लोबली मेट्रो रेल में यूज होता है। लेकिन मंत्रालय इसमें भारतीय रेलवे की तरह ब्रॉड गेज का इस्तेमाल करना चाहता था। जिसको लेकर कई मिनिस्टर से श्रीधरन की बहस भी हुई। लेकिन अंत में श्रीधरन को गीता का पाइ याद आया और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। दिल्ली मेट्रो में 16 साल की नौकरी करते हुए श्रीधरन ने इसका स्वरूप ही बदल दिया। इसीलिए लोग उनको 'मेट्रो मैन' कहकर पुकारने लगे। श्रीधरन को 2001 में पद्मश्री और 2008 में पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari