Dussehra 2023 : रावण को एक राजा वीणा वादक राजनेता और योद्धा के रूप में जाना जाता है। रावण वेदों और शास्त्रों के कट्टर समर्थक रहे। इसके अलावा वह ज्योतिष और आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी रहें। इसीलिए रावण के जीवन से सीखने के लिए कुछ निश्चित जीवन सबक भी हैं। आइए हम यहां पढ़ें उनके बारे में...

कानपुर (इंटनेट डेस्क)। Dussehra 2023 : रावण ताकतवर होने के साथ ही बहुत बुद्धिमान कहा जाता है। रावण को ब्रह्मराक्षस (ब्राह्मण और राक्षस का मिश्रण) के नाम से भी जाना जाता है। वह एक अद्भुत राजा, वीणा वादक, कूटनीतिज्ञ और योद्धा थे। वेदों और शास्त्रों की वकालत रावण ने की थी। वह ज्योतिष और आयुर्वेद के भी विशेषज्ञ थे। रावण में वे सभी गुण थे जो किसी को उत्कृष्ट बनाते हैं, लेकिन उसके अहंकार और घमंड ने उसे मार डाला। हालांकि, रावण के जीवन से सीखने के लिए कुछ निश्चित जीवन सबक हैं। इसमें शिक्षा अति आवश्यक, नेतृत्व कौशल, कभी अहंकारी न बनें व हमेशा समय को महत्व दें जैसे गुण हैं।

रावण से सीखें जीवन के सबक

शिक्षा अति आवश्यक
सभ्यता को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। रावण को बहुत बुद्धिमान बताया गया है। उन्हें सभी शास्त्रों और वेदों का गहन ज्ञान था।

नेतृत्व कौशल मायने रखता है
लंका में कुबेर का क्षेत्र रावण ने उनसे छीन लिया था। उनके शासनकाल के दौरान लंका समृद्ध और समृद्ध हो गई। वह एक महान राजा थे जो लंकाई जनता के प्रिय थे। लंका को सोने की खान भी कहा जाता था क्योंकि रावण के शासन में हर घर में सोना होता था। वह एक सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं व्यक्तित्व के धनी थे। यह तथ्य कि नेतृत्व गुणों वाला एक चरित्र महान ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकता है, हर किसी के लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त, भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से कूटनीति का पाठ सीखने के लिए भेजा।

कभी अहंकारी न बनें
लंकापति रावण का अहंकार और अहंकार ही उसकी हार का कारण था। उसे अपनी उपलब्धियों पर बहुत संतोष था और वह सोचता था कि वह अपराजेय है। अपने अहंकार और प्रतिशोध की इच्छा के कारण, रावण ने देवी सीता का अपहरण कर लिया और भगवान राम ने अंततः उसे परास्त किया। इसलिए, लोगों को सुखी और सार्थक जीवन जीने के लिए अपने अहंकार से छुटकारा पाना सीखना चाहिए।

हमेशा समय को महत्व दें
रावण किसी भी शुभ कार्य को तुरंत समाप्त करने की सलाह देता है। वहीं दूसरी ओर अशुभ कार्यों को जितना हो सके टालते रहें। उन्होंने "शुभस्य शिघ्रं" कहकर इस विचार की पुष्टि की। उन्होंने लक्ष्मण के सामने स्वीकार किया कि राम को पहचानने में उनकी असमर्थता ने उन्हें मोक्ष तक पहुंचने से रोक दिया।

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Posted By: Inextlive Desk