DRDO के सेना को तीन तोहफे, शामिल है परमाणु हमले के बावजूद दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला बख्तरबंद वाहन
नया रडार स्वाति
ऐसा नहीं है कि इस किस्म के रडार पहले भारतीय सेना के पास नहीं थे लेकिन अब पूरी तरह भारत में ही इसे विकसित कर लिया गया है। पहले इन्हें सोवियत संघ से खरीदना पड़ता था। ये पूर्णत स्वदेशी स्वाति नाम का वेपन लोकेटिंग रडार है। स्वाति रडार सिस्टम दुश्मन के मोर्टार राकेट लांचर और आर्टिलरी गन को केवल एक से दो मिनट में तबाह करने की ताकत रखता है। साथ ही इसे फायर सिस्टम के साथ जोड़कर सीमा पर होने वाली फायरिंग की जानकारी के साथ ऑटोमेटिक जवाब भी दिया जा सकता है। स्वाति रडार सिस्टम दुश्मन की तरफ से हो रही फायरिंग की लोकेशन या ठिकाने का सटीक पता लगाता है। स्वाति रडार सिस्टम की रेंज 30 से 50 किमी तक है। इस रडार सिस्टम की उस इलाके में भी खासी अहमियत है जहा क्रॉस बॉर्डर फायरिंग होती है और रात में दुश्मन चुपके से घात लगाकर हमला कर सकता है। स्वाति रडार हमला करने वाले हथियार की लोकेशन को 10 से 15 सेकंड में बिल्कुल सटीक तरीके से ढूंढ निकालता है। यह 16,000 फीट तक की ऊंचाई वाले इलाकों में भी काम करने में सक्षम है। 30 से लेकर 55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में समान योग्यता से काम को अंजाम देते हुए यह 50 किलोमीटर की तक की रेंज पर नजर रख सकता है।
ये है इंडियन आर्मी
इसके साथ ही डीआडीओ ने NBC रेकी वाहन एमके-1 भी विकसित किए हैं। ये वाहन जल और थल दोनों सर्फेस पर चल सकते हैं। इनसे परमाणु, जैविक और रसायनिक हमले से प्रभावित क्षेत्रों का पता लगाया जा सकता है। इन वाहनों में मौजूद उपकरणों की मदद से यह प्रभावित क्षेत्रों से तरल एवं ठोस नमूने एकत्र करने के साथ-साथ उसका डाटा भी त्वरित गति से भेज सकता है। इसकी वजह से रसायनिक और परमाणु हमलों और रेडियोएक्टिव इलाकों में मदद पहुंचाने और परिस्थितियों का सामना करने में काफी सहायता होगी। जो सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूण है।
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रेडियोएक्टिव एंटी डोज
इसके साथ ही डीआरडीओ ने एनबीसी मेडिकल किट को और ज्यादा विकसित और आधुनिक बनाया है। इसमें न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हथियारों के
प्रभावों से बचाने वाली दवाएं शामिल हैं। रेडियोएक्टिविटी सांसों, आखों और त्वचा के जरिए शरीर में पहुंच कर नुकसान कर सकती है। इसीलिए इस किट में शामिल करने के लिए ऐसी दवाइयां शामिल की गयी हैं जो उसके प्रभाव को निष्क्रीय कर सकती हैं। ऐसी करीब 15 अति विकसित दवायें और ड्राप्स जो गामा रेडिऐशन सहित किसी भी प्रकार के रेडियोएक्टिव असर को खत्म कर सकें, परीक्षण के बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पास स्वीकृति के लिए भेजी गयी हैं।
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