भाटी मर्डर केस में डी पी यादव को उम्रकैद, जाने क्या था मामला और कौन हैं यादव
करीब 23 साल पहले यूपी के विधायक महेंद्र सिंह भाटी का मर्डर हुआ था जिसमें प्रदेश के ही बाहुबली विधायक डीपी यादव पर हत्या का आरोप लगा था. पिछले दिनों यादव ने सीबीआई कोर्ट के सामने सरेंडर किया और ट्यूजडे को जस्टिस अमित कुमार सिरोही ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी है उनके साथ् करन यादव, प्रनीत भाटी और पाल सिंह उर्फ लक्कड़पाला को भी सजा सुनाई गई. भाटी के परिवार ने अदालत के फैसले पर संतोष जताया है.
दोपहर दो बजकर 25 मिनट पर जैसे ही अदालत का फैसला आया तो कोर्ट में मौजूद अभियुक्त डीपी यादव, करन यादव, प्रनीत भाटी और पाल सिंह उर्फ लक्कड़पाला के चेहरे लटक गए. हालांकि, सभी के चेहरों पर सुबह से ही तनाव था, लेकिन आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाने के बाद एक बारगी वहां सन्नाटा छा गया. जबकि महेंद्र भाटी के बेटे समीर भाटी ने फैसले पर संतोष जताया. डीपी यादव एक रोज पहले ही अदालत में समर्पण किया, जबकि तीन अन्य अभियुक्तों को अदालत के आदेश पर 28 फरवरी को ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. क्या था मामला
यूपी के दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की 13 सितंबर 1992 की भंगेल रोड पर रेलवे क्रासिंग के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस वक्त वह अपने दोस्त उदय प्रकाश आर्य और सरकारी गनर वेदराम कौशिक के साथ कार में सवार थे. ताबड़तोड़ चली गोलियों से कार सवार दोस्त की भी मौके पर ही मौत हो गई थी. जबकि, गनर व राह चलता एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गए थे. भाटी की कार चालक देवेंद्र फायरिंग होते ही वहां से बचकर निकल गया. पूर्व विधायक के रिलेटिव अनिल भाटी ने थाना दादरी में घटना की एफआईआर दर्ज कराई थी. अगस्त 1993 में तत्कालीन राज्य सरकार की सिफारिश पर मामला सीबीआइ के सुपुर्द कर दिया गया. डीपी यादव का सफरजिन डीपी यादव के नाम की कई राज्यों में धाक थी, जिनके नाम से बड़े-बड़े फैसले बिना विवाद के सुलझ जाते थे, वह बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी थे. उन्होंने दूधिया से मंत्री बनने तक का सफर पूरा किया. शराब की दुनिया में कदम रखने के बाद उन्होंने खूब पैसा कमाया और फिर राजनीति में अपने पैर जमाकर अपना कद बढ़ाया. अपनी छवि सुधारने के लिए तमाम तरह के सामाजिक कार्यों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई.
करीब 66 साल पहले नोएडा के सर्फाबाद गांव में डीपी यादव का जन्म महाशय तेजपाल के घर हुआ था. पिता कई बार लगान देने के विरोध में जेल भी गए थे. आर्य समाजी परिवार में पले बढ़े डीपी ने अपने नाम के पीछे यादव की जगह आर्य जोड़ लिया था. पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं थी इसलिए दूध का कारोबार शुरू कर दिया लेकिन ज्यादा दिन तक यह कारोबार रास नहीं आया. अति महत्वाकांक्षी यादव ने 70 के दशक में शराब माफिया बाबू किशन लाल से संपर्क साधा और यहीं से उसके जीवन ने पलटी खाई. अपनी दबंग कद काठी के चलते डीपी यादव किशन लाल के नजदीकी बन गए. कुछ ही समय बाद वह किशन लाल के बिजनेस पार्टनर बन गए. दोनों मिलकर जोधपुर से कच्ची शराब लाते और पैकिंग के बाद अपना लेबल लगा कर उस शराब को आसपास के राज्यों में बेचते थे. इस बीच डीपी ने अपनी टीम बनाई. जगदीश पहलवान, कालू मेंटल, परमानंद यादव, श्याम सिंह, प्रकाश पहलवान, शूटर चुन्ना पंडित, सत्यवीर यादव, मुकेश पंडित और स्वराज यादव वगैरह डीपी के खास गुर्गे बन गए.
1990 के आसपास कच्ची शराब पीने से हरियाणा में 128 लोग मौत के मुंह में समा गए. जांच के बाद डीपी यादव को दोषी मानते हुए हरियाणा पुलिस ने उसके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की. पैसा, पहुंच और दबंगई के बल पर धीरे-धीरे डीपी यादव अपराध की दुनिया का स्वयंभू बादशाह हो गया. दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होने पर 1991 में डीपी यादव पर एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) के तहत भी कार्रवाई हुई. इसके बावजूद उन्होंने 1992 में अपने राजनीतिक गुरु दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या करा दी. इसके बाद गैंगवार शुरू हुआ, जिसमें डीपी के गुर्गों ने कई लोगों को मारा. इसमें डीपी के पारिवारिक सदस्यों के साथ उनके कई खास लोगों की बलि चढ़ गई. डीपी पर हत्या के नौ और डकैती के दो सहित अपहरण और फिरौती वसूलने के तमाम मुकदमे दर्ज हैं. अधिकांश मामले हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बुलंदशहर और बदायूं जिले में दर्ज हैं.राजनीति के सहारे की इमेज बदलने की कोशिश
अकूत संपत्ति अर्जित करने के बाद भी डीपी यादव की छवि एक गुंडे और माफिया वाली ही थी, जिससे निजात पाने के लिए वह छटपटा रहे थे. 80 के दशक में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने उन्हें कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का गाजियाबाद अध्यक्ष बना दिया. इसी बीच वह महेंद्र सिंह भाटी के संपर्क में आए और राजनीति में पदार्पण किया. पहली बार डीपी यादव बिसरख से ब्लाक प्रमुख चुने गए. इसके बाद मुलायम सिंह यादव के संपर्क में आ गए. कहा जाता है कि पार्टी गठन करने के बाद मुलायम सिंह यादव को धनाढ्य लोगों की जरूरत थी और डीपी को मंच चाहिए था. सो दोनों का आसानी से मिलन हो गया. मुलायम यादव ने डीपी को बुलंदशहर से टिकट दिया और वह धनबल व बाहुबल का दुरुपयोग कर आसानी से जीत गए. सरकार बनने पर मुलायम ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया और पंचायती राज मंत्रालय की जिम्मेदारी दी. मुलायम सिंह से हुई दूरी जिस पैसे के लिए मुलायम ने डीपी यादव को हाथों-हाथ लिया था, उसी पैसे के कारण उन्होंने डीपी से दूरी बना ली. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव के करीबियों और पार्टी के खास नेताओं को डीपी यादव आए दिन कीमती तोहफे भेजते थे. डीपी यादव पार्टी पर हावी होते, उससे पहले मुलायम ने डीपी से ही किनारा कर लिया. तब से मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से डीपी लगातार टकरा रहो हैं. खुद मुलायम सिंह यादव को संभल लोकसभा क्षेत्र से चुनौती दे चुके हैं पर हार गए. इसके बाद प्रो. रामगोपाल यादव के विरुद्ध भी चुनाव लड़ा, पर कामयाबी नहीं मिली. पिछले लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव के विरुद्ध बदायूं लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और इस चुनाव में भी हार गए. सांसद व विधायक रहे डीपी डीपी यादव भाजपा और बसपा में भी रहे और एक-एक कर जब सबने किनारा कर लिया, तो अपना राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम की पार्टी गठित कर ली. डीपी यादव संभल लोकसभा क्षेत्र से सांसद एवं राज्य सभा सदस्य के साथ बदायूं के सहसवान क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. पिछली बार पूर्ण बहुमत की बसपा सरकार आने पर उन्होंने अपने दल का बसपा में विलय कर लिया था और सत्ता का दुरुपयोग कर अपने भतीजे जितेंद्र यादव को एमएलसी बना दिया. इसके अलावा अपने साले भारत सिंह यादव की पत्नी पूनम यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन करा दिया.परिवार के चार लोगो को हुई है उम्र कैद डीपी यादव समेत परिवार के चार लोगों को अब तक अलग-अलग मामलों में उम्र कैद की सजा हो चुकी है. महेंद्र भाटी हत्याकांड में सीबीआइ कोर्ट ने डीपी यादव को दोषी करार देते हुए मंगलवार को उम्र कैद की सजा सुनाई है. इसी मामले में उनके साले करन यादव को भी कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है. डीपी यादव का बेटा विकास यादव व भांजा विशाल यादव भी जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं. नीतीश कटारा की हत्या में कोर्ट ने दोनों को दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी.