सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया कि दहेज मांगने वाले इसे कभी भी ऐसा जुर्म करें वो अपराध ही है ओर शादी के टाइम के बाद दहेज की डिमांड करने वाले भी सजा के उतने ही हकदार हैं. इसी बेस पर कोर्ट ने दहेज हत्या से जुड़े एक मामले में दोषी की उम्रकैद बरकरार रखी.


जस्टिस एमवाई इकबाल और पिनाकी चंद्र घोष की बेंच ने दहेज हत्या के दोषी ठहराए गए उत्तराखंड के भीम सिंह की उस अप्लीकेशन को रिजेक्ट कर दिया, जिसमें दलील दी गई थी कि उसने विवाह के समय दहेज की कोई डिमांड नहीं की थी और शादी के बाद ऐसी बात का कोई मतलब नहीं है. पहले के एक डिसीजन का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि इंडियन सोसायटी में दहेज सोशल ईवल के रूप में मौजूद है. यह लॉजिक गलत है कि शादी से पहले दहेज की मांग नहीं की गई थी. दहेज की डिमांड किसी भी समय हो सकती है और वो जुर्म है. पीठ ने यह भी कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए कंडीशनल प्रूव में कोई कमी नहीं है. आरोपी को दोषी साबित करने के लिए चेन एविडेंस जरूरी हैं. एविडेंस की चेन टूटी होने पर आरोपी को संदेह का लाभ मिल सकता है. इस मामले में कोई मिसिंग लिंक नहीं है, इसलिए आरोपी संदेह का लाभ प्राप्त करने का पात्र नहीं है.
इस मामले में भीम सिंह की शादी मई, 1997 में प्रेमा देवी से हुई थी. शादी के बाद भीम और उसके फेमिली मेंबर्स ने प्रेमा को यह कहकर ताने देना और परेशान करना शुरू कर दिया, कि वह दहेज में कुछ नहीं लाई. सितंबर, 1997 में प्रेमा को जहर देकर मार दिया गया और इसके बाद जला दिया गया. लोअर कोर्ट ने भीम और उसके भाई को आइपीसी की दहेज हत्या, क्रूअलटी रिलेटेड सेक्शनंस और दहेज रोकथाम कानून के तहत दोषी ठहराया था.

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Posted By: Molly Seth