चीन सीमा पर तनाव के बावजूद गोली क्यों नहीं चलती?
भारत और पाकिस्तान की सीमा पर अक्सर फ़ायरिंग की खबरें आती हैं और आए दिन दोनों पक्षों के जवान भी मारे जाते हैं। जबकि चीन के साथ तनाव होने बावजूद बात हाथापाई से आगे नहीं बढ़ती। ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान और भारत की सीमा पर सैनिकों में वह संयम क्यों नहीं दिखता जो चीन और भारत की सीमा पर दिखता है?
चीन में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता बताते हैं कि भारत और चीन ने समझौतों के तहत तय किया है कि मतभेद कितने भी हों, बॉर्डर पर हम उत्तेजना पर काबू रखेंगे। उन्होंने बताया कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्रीअटल बिहारी वाजपेयी चीन आए थे, तब दोनों देशों ने आधारभूत राजनीतिक मापदंड तय किए गए थे, जिन्हें बाद में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोहराया गया।लगातार समझौते करते रहे हैं भारत और चीन
मेजर जनरल (रिटायर्ड) अशोक मेहता बताते हैं कि 1975 में आख़िरी बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच गोली चली थी। इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ था मगर इसके बाद से अब तक ऐसी घटना नहीं दोहराई गई। वह बताते हैं कि लगातार समझौते करके भारत और चीन ने लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल पर समस्याओं को बैकबर्नर पर डाल दिया है।
वह बताते हैं, '1993 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए मेनटेनेंस ऑफ पीस ऐंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर दस्तख़त हुए, उसके बाद 1996 में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स पर समझौता हुआ। इसके बाद 2003, 2005 में भी समझौते हुए। 2013 में बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ जो सबसे ताज़ा समझौता है।'
उनका कहना है कि जहां भारत और चीन की सीमा तय नहीं है, वहां पर दोनों शांति बनाए रखते हैं और इन समझौतों की वजह से ही कोई गोली नहीं चली है। उन्होंने कहा, 'दोनों देशों ने तय किया है कि जब हमारे आर्थिक और नागरिक संबंध अच्छे और परिवक्व हो जाएंगे, तब जाकर हम सीमाओं के मसले सुलझाएंगे।'ऐपल के कर्मचारी अपने नए spaceship ऑफिस में जाने की बजाय कंपनी छोड़ने की धमकी क्यों दे रहे हैं?
मगर अब टूटता दिख रहा है संयम
पिछले दिनों लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच कथित पत्थरबाज़ी का एक वीडियो सामने आया था। क्या दोनों देशों के सैनिकों का संयम टूट रहा है? इस बारे में सैबल चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, 'अगर वाकई ऐसा हुआ है तो शांति का सिलसिला टूट रहा है और भयानक परिस्थिति की तरफ़ हम जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, 'चीन और भारत की तरफ से जो सैनिक तैनात हैं, वे 21-22 साल से युवा लड़के हैं। उनके भी परिवार हैं, जो रेडियो सुनते हैं, टीवी देखते हैं। मीडिया उत्तेजना फैला रहा है, जिसका असर उनपर भी पड़ता है। उनकी सरकार कितना भी कहे कि शांति बनाए रखो, मगर संयम टूट सकता है और ग़लती हो सकती है।'सैबल बताते हैं कि रिस्क बढ़ता जा रहा है क्योंकि गतिरोध दो महीनों से ज़्यादा वक़्त हो गया है। उनका मानना है कि इन हालात से निपटने के लिए तात्कालिक कदम उठाने चाहिए। उन्होने कहा, 'सीमा विवाद को हल करना लंबी कहानी है और चलती रहेगी। मगर अभी इस तनाव को दूर करना ज़रूरी है कि कहीं गोली न चली जाए।'
उन्होंने कहा, 'दोनों देशों के शीर्ष नेताओं, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐलान करें कि बॉर्डर पर चाहे कुछ भी हो रहा हो, हम दोनों देशों का रिश्ता हमारे लिए मायने रखता है। इससे तैनात सैनिकों तक यह बात पहुंचेगी कि हमारे लिए ये रिश्ते अहमियत रखते हैं, बेशक आज गहमागहमी हो रही है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम लड़ मरें।'
सैबल बताते हैं कि जिनपिंग और मोदी ने इस दिशा में कोशिश तो की है मगर उन्होंने ऐसा कुछ साफ़ संदेश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि दोनों नेता एक बड़ी राजनीतिक गलती करने जा रहे हैं और इससे भयानक हालात पैदा हो सकते हैं।धरती पर दौड़ती हुई चांद की ऐसी छाया जो दुनिया ने देखी पहली बारInternational News inextlive from World News Desk