भारत की आईटी कंपनियों में इस वक़्त बेहद तनाव का माहौल है। कई बड़ी कंपनियां बड़े पैमाने पर छंटनी कर रही हैं। कुछ कंपनियां अपना काम समेट रही हैं तो कुछ कंपनियां ऑटोमेशन की वजह से लोगों को नौकरी से निकाल रही हैं। इन सब वजहों से कामकाजी लोगों में तनाव बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में अक्सर कारोबारी दुनिया में छंटनी और मंदी की वजह से तनाव बढ़ जाता है।

तो क्या नौकरी में तनाव भरा माहौल आपको अच्छा काम करने को प्रेरित करता है?

हम ये सवाल इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि कई कंपनियां जान-बूझकर कर्मचारियों पर दबाव बनाती हैं।

बहुत से मैनेजरों को लगता है कि दबाव बनाने से कर्मचारी काम बेहतर करते हैं। क्या वाक़ई ऐसा होता है?'

 

नौकरी खोने का डर
क्या आपको नौकरी खोने का डर सताता है तो आप ज़्यादा ज़ोर लगाकर काम करते हैं?

क्या आपको तरक़्क़ी न मिलने का ख़ौफ़ भी ज़्यादा मेहनत करने का हौसला देता है? इस बारे में जो रिसर्च हुए हैं, उनके नतीजे मिले-जुले ही रहे हैं।

कई बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों पर काम का, टारगेट पूरा करने का और बेहतर नतीजे देने का दबाव इसीलिए बनाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे कर्मचारी अच्छा काम करेंगे।

अमरीकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक के पूर्व चेयरमैन जैक वेल्श इस बात का एक फॉर्मूला ले आए थे। ये फॉर्मूला था-20-70-10.

इसका मतलब ये कि सबसे ख़राब काम करने वाले दस फ़ीसद कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दो। इससे बाक़ी लोगों पर बेहतर काम करने का दबाव बनेगा।

कंपनी का परफॉर्मेंस इससे अच्छा होगा। एक और मैनेजमेंट फॉर्मूला है-अप ऐंड आउट।

 

नौकरी का नोटिस
मिसाल के तौर पर अमरीका में दो हफ़्ते के नोटिस पर भी लोगों को नौकरी से निकाला जाता है।

वहीं यूरोपीय देशों में नौकरी से निकालने के लिए आपको कई बार तो तीन महीने की नोटिस देनी पड़ती है।

बेल्जियम में जो लोग तीन साल से नौकरी कर रहे हैं, उन्हें निकालने के लिए कंपनी को तीन महीने का नोटिस देना होता है।

ऐसे में बेल्जियम में कामकाजी लोग नौकरी जाने के डर से ज़्यादा परेशान नहीं होते।

नौकरी में सिर्फ़ नौकरी जाने का डर नहीं होता, तरक़्क़ी और भविष्य में अपने रोल को लेकर भी लोग बहुत फ़िक्रमंद होते हैं।

बेल्जियम की ल्यूवेन यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक टिन वांडर एल्स्ट ने इस बारे में काफ़ी काम किया है।

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डिप्रेशन के शिकार
आप ज़्यादा अच्छा काम करते हैं। लेकिन दफ़्तर में बहुत ज़्यादा तनाव का होना आपके काम और आपकी सेहत, दोनों पर असर डालता है।

कनाडा के टोरंटो स्थित एचआर सलाहकार डेविड क्रीलमैन कहते हैं कि ज़्यादा तनाव भरे माहौल में काम करने वालों की दिमाग़ी हालत ख़राब होने लगती है।

वो बार-बार ग़लतियां करने लगते हैं। उनका बाक़ी लोगों के साथ तालमेल नहीं बन पाता है। इससे लोगों की सेहत भी बिगड़ने लगती है।

वांडर एल्स्ट कहती हैं कि दफ़्तर में बहुत ज़्यादा तनाव होने पर कई लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।

भले ही कुछ लोग नौकरी की अनिश्चितता के दौर में अच्छा काम करते हों। लेकिन, जो लोग नौकरी जाने के डर से पीड़ित होते हैं, अक्सर उनका काम ख़राब ही होता है।

वांडर एल्स्ट का मानना है कि नौकरी में ख़ौफ़ का माहौल कभी भी कारगर नहीं हो सकता। तनाव भरा माहौल किसी भी दफ़्तर में काम की क्वालिटी को गिरा देता है।

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स्पेशल फॉर्मूला
लोग एक दूसरे से झगड़ने लगते हैं। उनकी क्रिएटिविटी पर भी तनाव का असर होता है।

विलियम शिमन सलाह देते हैं कि अगर आप नौकरी का तनाव नहीं झेल पा रहे हैं, तो आपको ऐसी कंपनी तलाशनी चाहिए जहां नाइंसाफ़ी नहीं होती। माहौल पारदर्शी होता है।

इस तरह के माहौल में लोग ज़्यादा ईमानदारी से और बेहतर काम कर पाते हैं। भले ही आप किसी भी पेशे में हों।

अगर आपको ये महसूस होता है कि आपकी कंपनी आपके साथ इंसाफ़ करेगी। आपकी कंपनी के मालिक आपके भले की सोचते हैं, तो, आपका काम बिला शक बेहतर होगा।

हालांकि नौकरी को लेकर बेफिक्र महसूस करने का कोई स्पेशल फॉर्मूला नहीं है।

अगर आपको नौकरी को लेकर बहुत ज़्यादा तनाव हो रहा है, तो इसे लेकर आपको गंभीर होना चाहिए।

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Posted By: Chandramohan Mishra