80 के दशक में जब पूरी दुनिया में वेस्‍टइंडीज और इंग्‍लैंड के खिलाड़ियों का खौफ रहता था। उस जमाने में भारत के एक खिलाड़ी ने अपनी पहचान बनाई नाम है दिलीप वेंगसरकर। दिलीप ने जितने दिन क्रिकेट खेला शान के साथ मैदान पर उतरते थे। साथी खिलाड़ी उन्‍हें कर्नल भी बुलाते थे। तो आइए आज उनके 62वें जन्‍मदिन पर जानें उनसे जुड़ी कुछ महत्‍वपूर्ण बातें....


जब भारत को बचाया हारने से6 अप्रैल 1956 को जन्में दिलीप वेंगसरकर काफी स्टाईलिश बल्लेबाज माने जाते थे। उन्होंने उस दौर में अपनी ख्याति बनाई जब दुनिया कैरबियाई गेंदबाजों से डरती थी। वेंगसरकर ने अपना अंतराष्ट्रीय क्रिकेट करियर 1975-76 में न्यूजीलैंड के विरूद्ध शुरू किया। उन्होंने भारत के लिए ओपनिंग की। भारत यह मैच आराम से जीता परंतु दिलीप वेंगसरकर का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रह। इसके बाद 1979 में दिलीप वेंगसरकर ने पाकिस्तान के विरूद्ध दूसरे टेस्ट मैच में जबरदस्त खेल दिखाया। यह मैच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेला गया जहां भारत को जीतने के लिए 390 रनों की जरूरत थी। भारत मैच जीत तो नहीं सका लेकिन वेंगसरकर की बदौलत ड्रा जरूर हो गया।दुनिया के नंबर 1 बल्लेबाज


दिलीप वेंगसरकर 1983 में वर्ल्डकप जीतने वाली टीम का भी हिस्सा थे। 1985 से 1987 के बीच,  दिलीप वेंगसरकर ने टीम के लिए अच्छे खासे रन बनाए। पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, वैस्टइंडीज और श्रीलंका के विरूद्ध कई शतक जमाए। इस रिकॉर्ड के दम पर वे कूपर्स और लेब्रांड रेटिंग में सबसे अच्छे बल्लेबाज बनने में भी सफल हुए। और उस वक्त वह एलन बार्डर और क्लाइव लॉयड से भी आगे थे।अगर इंग्लैंड की तरफ से खेलते वेंगसरकर

दिलीप वेंगसरकर के अदंर जितनी प्रतिभा है, उन्हें उतनी पहचान नहीं मिली। कहा जाता है कि इंग्लिश खिलाड़ी डेविड गोवर अगर भारत में पैदा होते तो वह ज्यादा फेमस होते। वहीं दिलीप अगर इंग्लिश खिलाड़ी होते, तो वह और निखर कर आ जाते। खैर भारत में भी वेंगसरकर का काफी सम्मान हुआ है। वह भारतीय टीम के कप्तान भी रह चुके हैं। साल 1987 वर्ल्ड कप के बाद कपिल देव की जगह वेंगसरकर को कप्तानी सौंपी गई थी।कोहली को टीम में यही लाए थे

साल 1992 में क्रिकेट से रिटायर होने के बाद वेंगसरकर ने प्रशासनिक पदों की जिम्मेदारी भी निभाई। पहले वह मुंबई क्रिकेट एसोशिएशन के वाइस प्रेसीडेंट बने। बाद में उन्हें साल 2006 में बीसीसीआई ने सेलेक्टर कमेटी का चेयरमैन बना दिया। हालांकि इस दौरान उनका कार्यकाल थोड़ा विवादित रहा था। यह विवाद भारत के मौजूदा भारतीय कप्तान विराट कोहली को लेकर था। साल 2008 में जब कोहली को टीम में लाने की बात चली तो उस पर काफी विवाद हुआ। वेंगसरकर उस वक्त खिलाड़ियों का चयन किया करते थे। उन्होंने विराट को अंडर-19 वर्ल्ड कप 2008 में खेलते देखा था और वह काफी प्रभावित भी हुए। उसी साल भारतीय टीम श्रीलंका दौरे पर जा रही थी। उस टीम में सचिन तेंदुलकर नहीं थे, ऐसे में एक बल्लेबाज को उनकी जगह खिलाना था। तब वेंगसरकर ने कोहली के नाम का सुझाव दिया। मगर तत्कालीन कप्तान एमएस धोनी और कोच गैरी कर्स्टन कोहली की जगह एस बद्रीनाथ को टीम में रखना चाहते थे।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari