इस फिल्म में भी पिछली कई फिल्मों की तरह फिल्म की 'हेरोइन' का जीवन में एक ही मकसद है अपने सपनों के राजकुमार को ढूंढना और घर बसाना ये फिल्म भी अपने तरीके से बताती है कि हम आज भी नए जमाने की वुमन को किस चश्मे से देखते है। ताज्जुब की बात ये है कि इस वुमन का किरदार तापसी ने प्ले किया है जिसने बेबी पिंक और नाम शबाना में अपने किरदारों के थ्रू काफी औरतों को इंस्पिरेशन दी है। खैर जाने दीजिए उनकी कोई मजबूरी होगी जो उन्होंने ऐसी स्क्रिप्ट साइन की।

कहानी:

तापसी एक एंग्लिश लैंग्वेज कोच हैं और साकिब एक जिम इंस्ट्रक्टर जो फिल्मी हीरो बनना चाहते हैं। उनकी एंग्लिश भगवान भरोसे है इसलिए वो तापसी के पास आते हैं। प्यार होता है और फिर 'जाने तू या जाने न', कोई फर्क नहीं पड़ता।

 

समीक्षा:

फिर से रिव्यु की शुरुआत उसी सवाल से करता हूँ, जो हर घिसी पिटी कहानी वाली फिल्म देखने के बाद होती है, क्या फिल्मों में कहानियों का अकाल पड़ा है कि एक ही जैसी फिल्में लगभग हर हफ्ते देखनी पड़ती हैं। फिल्म की राइटिंग बेहद लाउजी है और अब तक की बनी हर कॉलेज फिल्म से सीन चुरा चुरा कर फिल्म की कहानी लिखी गई है, इसमे कुछ हिंदी और कुछ एंग्लिश फिल्म्स की झलक देखने को मिल जाएगी। आप हॉल में बैठ कर गेम खेल सकते हैं, 'गेस, कौन सी फिल्म से चुराया है?'. दो चार दोस्तों को लेकर जाइये और आप भी हॉल में यही गेम खेलिए, बेहतर मनोरंजन होगा, क्योंकि फिल्म देख के तो मनोरंजन होने से रहा। फिल्म के डायलॉग शायद कॉलेज स्टूडेंटस के समर कैम्प में लिखे गए हों। फिल्म प्रेडिक्टेबल है पर अच्छा ही है, आपको पॉपकॉर्न लाने और टॉयलेट जाने के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ेगा, कभी भी उठ कर जा सकते हैं। आप कुछ भी मिस नहीं करेंगे जो आपने पहले न देखा हो। फिल्म का कैमरावर्क अच्छा है और स्टाइलिंग बढ़िया है।

 

 

 

एक्टिंग:

तापसी, दर्शक आपको बहुत चाहते हैं, क्योंकि आप अच्छी ऐक्ट्रेस हैं। बेबी में अपने ज़बरदस्त रोल से न केवल आपने लोगों का दिल जीता बल्कि नीरज को आपकी अपनी प्रेकुएल फिल्म देने के लिए मजबूर भी किया। अब ऐसी क्या मजबूरी है कि आप जुड़वा 2 और 'दिल जंगली' जैसी फिल्म करके अपनी शानदार इमेज को तबाह करने पर तुली हुई है। आपसे आग्रह है कि आप अपनी पुरानी फिल्में फिर से देखें और समझने की कोशिश करें कि लोग आपको क्यों पसंद करते हैं। पर जहां क्रेडिट ड्यू है वहां देना पड़ेगा, आपकी एक्टिंग इस फिल्म में भी अच्छी है पर फिल्म अच्छी नहीं है। इस फिल्म के लिए न तो आप याद रखी जाएगी और न ही साकिब आप। साकिब ने भी अपनी इससे पहले की फिल्मों जैसे बॉम्बे टॉकीज़ में जानदार किरदार निभाए हैं, पता नहीं क्यों आप बेसिरपैर के किरदार चुनने चले हैं।

 

रेटिंग : 2 STAR

कुल मिलाकर ये फिल्म खराब लिखी हुई रोमांटिक कॉमेडी है जो खराब स्क्रिप्ट्स के जंगल मे कहीं खो गई है। ये फिल्म जल्दी ही बेनाम होकर खो जाएगी, पर फिर भी आप अगर बिना दिमाग लगाये एक स्टुपिड हल्की फुल्की फिल्म देखेने के मूड में हैं तो जरूर जाइए ये फिल्म आपको नुकसान नहीं पहुंचायगी।

Review by : Yohaann Bhargava
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Posted By: Chandramohan Mishra