नए साल में लोग तरह तरह के संकल्प और इरादे करते हैं. इनमें से एक संकल्प अकसर वज़न घटाने का होता है जिसके लिए लोग डाइटिंग करते हैं.

अगर आप सोच रहे हैं कि डाइटिंग आधुनिक चलन है तो ऐसा नहीं है. ग्रीक और रोमनकाल में भी डाइटिंग का चलन था लेकिन तब ये ज़्यादातर फिटनेस और सेहत के नज़रिए से की जाती थी. लेकिन धीरे-धीरे ये एक फैशन जैसा बन गया और डाइटिंग के अजीबो-गरीब तरीके सामने आने लगे.
आइए नज़र डालते हैं डाइटिंग के कुछ अजीब और सेहत के लिए नुकसानदेह तरीकों पर नज़र
चबाओ और फेंको
20वीं सदी की शुरुआत में अमरीका के होरेस फ्लेचर ने कहा कि खाना अच्छे से चबाना और फिर थूक देना वज़न घटाने का बेहतरीन तरीका है.
यानी खाने को इतना चबाओ कि उसके सारे अच्छे तत्व आपके अंदर चले जाएँ और जो बच जाए उसे मुँह से थूक दो. फ्लेचर के मुताबिक करीब 700 बार खाद्य पदार्थ को चबाएँ. ये तरीका काफी लोकप्रिय था. फ्रांज़ काफ्का और हेनरी जेम्स जैसी मशहूर हस्तियाँ इस तरीके से डाइटिंग करती थीं.
इतिहासकार लुईस फॉक्सक्रॉफट के मुताबिक बात यहाँ तक पहुँच गई थी कि पार्टियों में समय का ख्याल जाता था ताकि लोगों को खाना चबाना का समय मिले.
साथ ही आप दो हफ्ते में एक ही बार शौच जा सकते थे और मल से कोई बदबू नहीं आती थी. फ्लेचर अपने मल का नमूना साथ लेकर घूमते थे और लोगों को दिखाते थे.


टेपवर्म (फीता कृमि)
डाइटिंग का ये तरीका कमज़ोर दिल वालों के लिए नहीं है. इतिहासकार लुईस फॉक्सक्रॉफट कहती हैं कि टेपवर्म खाने का चलन 18वीं सदी की शुरुआत में हुआ. इमसें लोग गोली की शक्ल में टेपवर्म खाते थे.
मान्यता ये थी कि टेपवर्म आंतों में जाकर बड़े होते हैं और खाने को सोख लेते हैं. इससे वज़न घट सकता था पर साथ में उलटी और दस्त भी हो सकता था.
जब लोगों का वज़न कम हो जाता था तो वे एंटी-पैरासिटीक दवाई लेते थे ताकि टेपवर्म यानी कीड़े मर जाएँ. डाइटिंग करने वाले को शौच के ज़रिए कीड़ों को निकालना होता था जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ हो सकती थीं. ये जोखिम भरा तरीका था.
टेपवर्म यानी कीड़े नौ मीटर की लंबाई तक बढ़ सकते हैं और सिररदर्द, मिर्गी आदी जैसी बीमारियों की वजह भी बन सकते हैं.

आर्सेनिक
19वीं सदी में डाइटिंग के लिए दवाइयाँ और पोशन लोकप्रिय हो गए लेकिन उनमें अकसर आर्सेनिक जैसे खतरनाक पदार्थ होते थे.
अकसर लोग बताई गई संख्या से ज़्यादा गोलियाँ ले लेते थे ताकि वो ज़्यादा वज़न कम कर सकें. लेकिन इससे आर्सेनिक की अधिकता से ज़हर फैलने का डर रहता था. आमतौर पर विज्ञापनों में बताया भी नहीं जाता था कि दवा में आर्सेनिक है. बहुत से सड़क छाप डॉक्टर खुद को विशेषज्ञ बताकर ये दवाएं बेचते थे.
विनेगर या सिरका
सेलिब्रिटी डाइट एक फैशन है. 19वीं सदी में भी ये चलन था कि लोग जानी मानी हस्तियों की तरह दिखना चाहते थे. मशहूर ब्रितानी कवि लॉर्ड बायरन ने सिरकायुक्त डाइट प्रचलित की जो बेहद लोकप्रिय हुई.
वे रोज़ सिरका पीते थे और सिरका में डूबे आलू खाते थे. उल्टी और हैजा इसके साइडएफेक्ट थे.
रोमांटिक मूवमेंट के इस लोकप्रिय कवि जैसी छरहरा काया पाने के लिए युवा केवल सिरके और चावल पर ज़िंदा रहते थे.
रबड़ के कपड़े
19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के बाद रबड़ का उत्पादन और इस्तेमाल बहुत बढ़ गया. इसमें रबड़ से बने निकर और अंदरूणी कपड़े शामिल हैं.
माना जाता था कि रबड़ चर्बी को रोक कर रकती है और इससे पसीना भी आता है. लोगों को उम्मीद थी कि इससे वज़न कम होगा.
इतिहासकार फॉक्सक्रॉफ्ट कहती हैं कि महिला और पुरुष दोनों रबड़ के कपड़े पहनते थे हालांकि ये असुविधाजनक था क्योंकि इससे माँस नर्म पड़ जाता था और ज़्यादा नमी के कारण टूट सा जाता था जिससे संक्रमण होने का डर रहता था.
प्रथम विश्व युद्ध शुरु होने के बाद ये चलन रुका क्योंकि युद्ध के लिए रबड़ चाहिए थी.

Posted By: Bbc Hindi