भारत के हर राज्‍य में होली का त्‍यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उत्‍तर प्रदेश से लेकर उड़ीसा और फिर पश्‍चिम बंगाल तक होली की हुडदंग छाई रहती है। रंगो का यह त्‍यौहार राज्‍य की सीमा बदलते ही नए नाम से जाना जाता है। कहीं दुल्‍हंडी तो कहीं मोहल्‍ला जितने राज्‍य उतने ही नाम। तो आइए होली के अन्‍य नामों पर भी नजर डाल लें।


2. दुल्हंडी होली हरियाणा में होली मौज और मस्ती का त्योहार है यहां देवर और भाभी के बीच रंग खेलने की परंपरा है और इसे दुल्हंडी कहते हैं। 4. बसंत उत्सवजब पूरा देश होली मनाता है उस समय पश्चिम बंगाल के सिल्लीगुड़ी में वसंत महोत्सव मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में बसंत उत्सव यानि होली की शुरूआत बंगाली कवि और लेखक रविन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। इस आयोजन को देखने के लिए बंगाल ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों और विदेशों तक से भी भारी भीड़ उमड़ती है। इस मौक़े पर एक जुलूस निकाल कर अबीर और रंग खेलते हुए विश्वविद्यालय परिसर की परिक्रमा की जाती है। 6. होला मोहल्ला
सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। 8. फगुआ होली


बिहार में वसंत पंचमी के बाद ही पूर्वांचल के जनपदों में होली के गीत गाए जाने लगते हैं और ये सिलसिला होली तक बरकरार रहता है। होली वाले दिन फगु पूर्णिमा होती है लेकिन अंग प्रदेश में इसे फगुआ कहते हैं। फगुआ मतलब फागुन, होली। इस दिन की परम्परा यह है कि सुबह सुबह धूल-कीचड़ से होली खेलकर, दोपहर में नहाकर रंग खेला जाता है, फिर शाम को अबीर लगाकर हर दरवाजे पर घूमके फगुआ गाया जाय। फगुआ का विशेष पकवान पिड़की (गुझिया) हर घर में बनता है। 9. कमन पोडिगई

तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे कहानी है कि तपस्या लीन शिव के मन में उनके लिए तपस्या कर रही पार्वती का प्रेम जगाने के लिए कामदेव तीर चलाया और क्रोधित शिव ने उन्हें भस्म कर दिया पर काम का तीर लगने से पावर्ती से विवाह भी कर निया। बाद में पार्वती के अनुरोध और कामदेव की पत्नी के विलाप से द्रवित शिव ने कामदेव को जीवित कर दिया। तब से यह दिन होली का होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रुप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari